History
Rajasthan me 1857 ki kranti | राजस्थान में 1857 की क्रांति

Rajasthan me 1857 Ki Kranti | राजस्थान में 1857 की क्रांति | 1857 ki kranti Rajasthan | Rajasthan me 1857 ki Kranti MCQ | 1857 ki Kranti Questions | 1857 ki Kranti ke karan
राजस्थान में 1857 की क्रांति : भरतपुर रियासत पहले रियासत थी जिसे सन 1803 में अंग्रेजों के साथ पहले मित्रता संधि की , इसके बाद 1803 में मित्रता संधि करने वाली अलवर दूसरी रियासत बनी |
राजस्थान की रियासतों ने बाह्य आक्रमणकारियों( मराठा और पिंडारियों )से बचने के लिए सन 1818 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हाथ मिलाया और संधि पर हस्ताक्षर किए संधि के उपरांत ईस्ट इंडिया कंपनी का राजस्थान की रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बढ़ाने लग गया |
1817 में हुई सिंधिया व अंग्रेजों की संधि के बाद राजस्थान पर मराठा प्रभाव सदा के लिए समाप्त हो गया |
ए. जी. जी. का मुख्यालय 1832 ई. अजमेर में स्थापित किया गया। लेकिन ग्रीष्मकल में वहां अंग्रेज अधिकारियों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने की वजह से सन 1845 में मुख्यालय को ग्रीष्मकल में माउंट आबू सिरोही में स्थापित कर दिया गया
लॉर्ड डलहौजी को हड़प नीति का जनक माना जाता है|हड़पनीति / गोदनिषेध नीति / डाक्ट्रिन ऑफ लेप्स नीति द्वारा हड़पा गया प्रथम क्षेत्र ब्यावर तथा प्रथम रियासत उदयपुर थी।
1857 ki kranti ke samay rajasthan ke shasak | 1857 की क्रांति के समय राजस्थान की रियासतों के शासक
कोटा | राम सिंह | अलवर | विनय सिंह |
उदयपुर | सज्जन सिंह | झालावाड़ | पृथ्वी सिंह |
कुशलगढ़ | हमीर सिंह राठौड़ | डूंगरपुर | उदय सिंह |
सिरोही | शिव सिंह | जयपुर | राम सिंह द्वितीय |
बीकानेर | सरदार सिंह | करौली | मदनपाल |
भरतपुर | जसवंत सिंह | धौलपुर | भगवत सिंह |
टोंक | नवाब वजीर खान | बांसवाड़ा | लक्ष्मण सिंह |
जोधपुर | तख्त सिंह |
1857 ki kranti ke samay rajasthan ka political agent | 1857 की क्रांति के समय राजस्थान की रियासतों के पोलिटिकल एजेंट
कोटा | मेजर बर्टन | जोधपुर | मेक मेसन |
जयपुर | ईडन | भरतपुर | मॉरीसन |
उदयपुर | शॉवर्स | सिरोही | जेडी हाल |
Rajasthan ki riyasat or british sandhiya | राजस्थान की रियासतें एवं ब्रिटिश संधियां
- लॉर्ड हेस्टिंग्स के समय राजस्थानी रियासतों ने एक-एक कर अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली|
- करौली रियासत राजस्थान की पहली रियासत थी जिसे नवंबर 1817 में अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार की |
- सिरोही राजस्थान की अंतिम रियासत थी जिसे सन 1823 ईस्वी में अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार की |
- अंग्रेज अधिकारी चार्ल्स मेटिकॉफ का राजस्थान रियासतों की अधीनता संधियों में महत्वपूर्ण योगदान रहा |
1857 की क्रांति से पहले राजस्थान की रियासतों का ब्रिटिश सरकार के साथ संधियों का क्रम
9-11-1817 | करौली | हरबक्श पाल सिंह |
15-11-1817 | टोंक | आमिर खा पिंडारी |
26-12-1817 | कोटा | उम्मेद सिंह |
6-1-1818 | जोधपुर | मानसिंह |
22-1-1818 | उदयपुर | भीम सिंह |
10-2-1818 | बूंदी | विष्णु सिंह |
21-3-1818 | बीकानेर | सूरत सिंह |
7-4-1818 | किशनगढ़ | कल्याण सिंह |
15-4-1818 | जयपुर | जगत सिंह |
12-12-1818 | जैसलमेर | मूलराज द्वितीय |
11-10-1823 | सिरोही | शिव सिंह |
लॉर्ड हसिंगटस के समय संधियों का दौर प्रारंभ हुआ | करौली रियासत ने नवंबर 1817 में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि कर अधीनता स्वीकार की यह राजस्थान की पहली संधि कहलाई | सिरोही राजस्थान की अंतिम रियासत थी जिसे 1823 ईस्वी में अंग्रेजों के साथ संधि कर अधीनता स्वीकार की |
इन संधियों के तहत प्रत्येक रियासत में एक ब्रिटिश अधिकारी नियुक्त किया गया जिसे रेजिडेंट कहा गया | संधियों के तहत अंग्रेजों ने रियासतों की सुरक्षा का जमा अपने हाथ में लिया और इसी कारण अंग्रेजों ने राज रियासतों की सुरक्षा के लिए राजस्थान में छह छावनियों की स्थापना की |
- 1835 में शेखावटी ब्रिगेड की स्थापना की गई एवं
- 1835 में जोधपुर रीजन की स्थापना तथा
- 1841 में मेवाड़ भील कोर की स्थापना की गई|
राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय सैनिक छावनियाँ
राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय 6 सैनिक छावनियाँ थी | इनमें से 2 सैनिक छावनियाँ खैरवाड़ा और ब्यावर ने 1857 के विद्रोह में भाग नहीं लिया।
छावनियाँ | रियासत | सैनिक टुकड़ियाँ |
खैरवाड़ा | उदयपुर | भील रेजीमेंट |
एरिनपुरा | पाली | जोधपुर लीजन |
नीमच | कोटा | कोटा बटालियन |
देवली | टोंक | कोटा रेजीमेंट |
ब्यावर | अजमेर | मेर रेजीमेंट |
नसीराबाद | अजमेर | बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री |
1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों की एजेंसियाँ
1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों की चार प्रमुख एजेंसियाँ कार्यरत थी |
नाम | केन्द्र | अंग्रेज अधिकारी |
मेवाड़ राजपूताना स्टेट एजेंसी | उदयपुर | मेजर शॉवर्स |
राजपूताना स्टेट एजेंसी | कोटा | मेजर बर्टन |
पश्चिम राजपूताना स्टेट एजेंसी | जोधपुर | मैक मोसन |
जयपुर राजपूताना स्टेट एजेंसी | जयपुर | कर्नल ईडन |
राजस्थान का प्रथम एजेंट टू गवर्नर जनरल मिस्टर लॉकेट |
1857 में कैनिंग द्वारा सैनिकों को ब्राउन बैस रायफल की जगह पर नई एनफील्ड राइफल दी गई इस राइफल के कारतूसों का खोल गाय व सूअर की चर्बी से बना होता था जिसे प्रयोग करते समय मुंह से खोलना पड़ता था इसी कारण मुस्लिम व हिंदू दोनों पक्षों की भावनाओं को ठेस पहुंची और यह 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण बना |
राजस्थान के बीकानेर में जन्मे अमरचंद बांठिया जो व्यापारी थे उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की कुछ धन देकर मदद की इसी कारण उन्हें 22 जून 1857 को ग्वालियर में पेड़ से लटका कर फांसी की सजा दे दी गई |
अमरचंद बांठिया 1857 की क्रांति में शहीद होने वाले पहले क्रांतिकारी थे |अमरचंद बांठिया को 1857 क्रांति का भामाशाह कहा जाता है| और इन्हें पहले शहीद होने के कारण राजस्थान का मंगल पांडे भी कहा जाता है|
1857 क्रांति की शुरुआत राजस्थान में 28 may में 1857 को नसीराबाद छावनी ( अजमेर ) में हुई |
1857 की क्रांति के समय राजपूताना का ए.जी.जी. जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस था |इसका मुख्यालय माउंट आबू बनाया गया |
भारत में 1857 के विद्रोह का प्रारंभ 10 में 1857 को मेरठ में हुआ | जिसका तत्कालीन कारण एनफील्ड रायफलों में गाय व सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग था |
1857 की क्रांति के विद्रोह से कुछ समय पहले ही 15 नेटिव इन्फैंट्री बटालियन को मेरठ से स्थानांतरित कर अजमेर भेजा गया था | विद्रोह के शक के कारण ए.जी.जी. ने इस बटालियन को नसीराबाद स्थानांतरित कर दिया|
नसीराबाद में विद्रोह | Nasirabad 1857 ki kranti
- राजस्थान में विद्रोह का प्रारंभ सबसे पहले 28 में 1857 को नसीराबाद में हुआ |
- नसीराबाद में 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री बटालियन के सैनिकों ने अपने ऊपर किए गए अविश्वास के कारण विद्रोह कर दिया |
- 15वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री के एक सैनिक बख्तावर सिंह द्वारा एक अंग्रेज अधिकारी प्रिचार्ड से पूछा गया कि तुम्हें हमारे ऊपर विश्वास नहीं है, अंग्रेज अधिकारी से उसे संतोषजनक उत्तर नहीं मिला |
- सैनिकों ने अपने ऊपर किए गए अविश्वास के कारण 28 मई, 1857 ई. को नसीराबाद छावनी में विद्रोह प्रारंभ कर दिया |
- नसीराबाद में स्पोटिश वुड व कर्नल न्यूबरी, के बनी नामक ब्रिटिश अधिकारियों को काटकर टुकड़े कर दिए गए।
- अंग्रेज अधिकारियों की हत्या के बाद क्रांतिकारी दिल्ली की ओर रवाना हुए।
नीमच में विद्रोह | Neemuch 1857 ki kranti
- कर्नल एबॉट ने हिंदू सिपाहियों शपथ दिलाई कि वे ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रहेंगे। सैनिक मोहम्मद अली बेग ने शपथ लेने से इनकार कर दिया और अंग्रेजों से कहा कि- अंग्रेजों ने स्वयं अपनी शपथ का पालन नहीं किया और अवध को हड़प लिया|
- नीमच छावनी के विद्रोह का नेतृत्व 3 जून 1857 को अली बेग व हीरालाल के नेतृत्व में हुआ |
- नीमच से अपनी जान बचाकर भागे 40 अंग्रेज महिलाओं का बच्चों ने डूंगला गांव (चित्तौड़गढ़) में रूगाराम किसान के घर शरण ली|
- मेजर शॉवर्स के कहने पर उदयपुर महाराणा स्वरूप सिंह ने इन 40 अंग्रेज महिलाओं व बच्चों को यहां से निकलकर उदयपुर के जग मंदिर महलो में इनको शरण दी|
- नीमच छावनी, मेजर शावर्स के नियंत्रण में थी। नीमच के विद्रोह का दामन मेजर शावर्स द्वारा किया गया |
- नीमच के विद्रोह की सूचना पर जब मेजर शावर्स नीमच जा रहा था , तब रास्ते में शाहपुरा के शासक लक्ष्मण सिंह ने अंग्रेजों के लिए अपने किले का दरवाजा नहीं खोला |
- वहाँ से शॉवर्स जहाजपुर होता हुआ वापस नीमच गया और 8 जून, 1857 ई. को नीमच पर वापस ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया।
- नीमच के विद्रोह के दमन के समय ही मेजर शॉवर्स द्वारा निंबाहेड़ा पर अधिकार कर उसे मेवाड़ राज्य को सौंप दिया गया |
एरिनपुरा में विद्रोह | Erinpura ki kranti
- एरिनपुरा में क्रांति की शुरुआत 21 अगस्त, 1857 ई. जोधपुर लीजन के सैनिकों द्वारा शीतल प्रसाद, तिलकराम व मोती खाँ के नेतृत्व में हुई।
- एरिनपुरा सैनिक छावनी में विद्रोही सैनिकों ने ए.जी.जी. लॉरेन्स के पुत्र एलेक्जेण्डर की हत्या कर यहाँ से क्रांतिकारी ईडर( डूँगरपुर ) के शिवनाथ के नेतृत्व में ‘चलो दिल्ली, मारो फिरंगी’ नारे के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुए।
- 16 नवम्बर, 1857 ई. को नारनोल (हरियाणा) में अंग्रेज अधिकारी ‘गराड़’ के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में ‘गराड़’ मारा गया लेकिन शिवनाथ के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की हार हुई।
आउवा में विद्रोह
- एरिनपुरा छावनी में विद्रोह के बाद यह सैनिक दिल्ली प्रस्थान के समय रास्ते में जब आऊंगा पहुंचे तो उन्होंने ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत के नेतृत्व में आउवा में अपना विद्रोह चालू रखा |
- आउवा, वर्तमान पाली में है जो कि क्रांति के समय जोधपुर रियासत का एक ठिकाना था |
- आउवा के क्रांतिकारियों की देवी सुगाली माता है| , कहा जाता है क्रांतिकारी इस देवी की पूजा करते थे | सुगाली माता के 10 सिर व 54 हाथ है।
- आहुवा के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत ने अपने आसपास के परगनाओं को साथ मिलकर 6000 सैनिकों की सेवा इकट्ठी की
बिथौड़ा का युद्ध | Bithoda ka Yudh
- ए.जी.जी. लॉरेन्स के कहने पर जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह ने औनाड़सिंह पंवार और फौजदार लोढ़ा के नेतृत्व में 10000 सैनिक एवं घुड़सवार तथा सेना को 12 तोपो के साथ क्रांतिकारियों के विद्रोह को कुचलने के लिए आहुवा के लिए भेजा ।
- अंग्रेजों की फौज लेफ्टिनेंट हीथकोट के नेतृत्व में जोधपुर की सेना के साथ भेजी गई |
- 8 सितम्बर, 1857 ई. को ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत, कैप्टन हीथकोट व तख्तसिंह के बीच बिथौड़ा का युद्ध (पाली) में हुआ|
- इस युद्ध में जोधपुर का किलेदार ओनर सिंह पवार मारा गया और कुशालसिंह चम्पावत विजयी हुआ।
- बिथौड़ा युद्ध के बाद कुशालसिंह चम्पावत को कोठारिया (भीलवाड़ा) के जोधसिंह ने शरण दी।
चेलावास का युद्ध | Chelawas ka Yudh
- बिथौड़ा के युद्ध के बाद- क्रांतिकारियों तथा जोधपुर के गवर्नर मैक मोसन के बीच18 सितम्बर, 1857 ई. को चेलावास का युद्ध (पाली) हुआ।
- चिलावास के युद्ध में अंग्रेजों की सेवा पराजित हुई और क्रांतिकारियों ने मेक मोसन का सिर काटकर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया।
- चेलावास युद्ध को ‘गोरों-कालों’ का युद्ध भी कहा जाता है|
- चेलावास के युद्ध के बाद जब एरिनपुरा छावनी के सैनिक क्रांतिकारी दिल्ली की तरफ रवाना हुए तब रास्ते में 16 नवंबर 1857 को नारनौल हरियाणा नामक स्थान पर इन सैनिकों का युद्ध अंग्रेजी सेवा के साथ हुआ जिसमें क्रांतिकारीयो की पराजय हुई, लेकिन इस युद्ध में ब्रिटिश अधिकारी गराड मारा गया |
- चेलावास के युद्ध के बाद कर्नल होम्स को आउवा भेज दिया गया और होम्स ने आउवा का घेरा डालकर आउवा पर अपना कब्जा कर लिया तथा यहाँ से होम्स, सुगाली माता की मूर्ति, पीतल व लोहे की तोपों को लेकर अजमेर चला गया।
- वर्तमान में सुगाली माता की मूर्ति बांगड़ संग्रहालय (पाली) में सुरक्षित राखी गई है|
- आउवा से कुशालसिंह ने सलूम्बर (उदयपुर) के रावत केसरी तथा कोठारिया के रावत जोधसिंह के घर शरण ली।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा 1857 की क्रांति के आरोपियों को बना शर्त माफी देने की घोषणा के बाद कुशाल सिंह चम्पावत ने अगस्त, 1860 ई. में नीमच में समर्पण कर दिया।
- आउवा में विद्रोह की जाँच के लिए मेजर टेलर की अध्यक्षता में टेलर आयोग का गठन किया गया, जिसने ठाकुर कुशाल सिंह के विरुद्ध लगे आरोपों की जांच की।
- टेलर आयोग ने इसकी जाँच की तथा नवम्बर, 1860 ई. में कुशालसिंह चम्पावत को रिहा कर दिया , लेकिन महाराजा जोधपुर ने उनकी जागीर का एक बड़ा भाग जब्त कर लिया।
- ठाकुर कुशालसिंह चंपावत की 1864 ई.को उदयपुर में मृत्यु हो गई। 1868 में ठाकुर कुशाल सिंह के पुत्र देवी सिंह ने जबरदस्ती आहुवा पर अपना कब्जा स्थापित कर लिया|
कोटा में विद्रोह | kota me 1857 ki kranti
- कोटा में विद्रोह की शुरुआत लाला जयदयाल व मेहराब खां के नेतृत्व में 15 अक्टूबर, 1857 ई. को नारायण व भवानी सैनिक टुकुडियो द्वारा क्रांति की गई |
- राजपूताना में सबसे ज्यादा सुंयोजित एवं वीभत्स ( प्रबल ) विद्रोह कोटा की क्रांति को माना जाता है|
- कोटा के क्रांतिकारियों ने पॉलिटिकल एजेंट बर्टन के दो पुत्रों फ्रेंक तथा आर्थर व ब्रिटिश डॉ. सेडलर व कांटम को मार डाला ओर कैप्टन बर्टन का सिर काटकर पूरे शहर में घुमाया गया।
- कोटा के शासक महाराव रामसिंह-द्वितीय को क्रांतिकारियों के द्वारा कोटा दुर्ग में बंदी बना दिया गया, जिसे करौली के शासक मदनपाल ने रिहा करवाया।
- अंग्रेजों के द्वारा मदनपाल को Grand Comnander State of India की उपाधि दी गई तथा तोप सलामी की संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई।
- कोटा के महाराव रामसिंह-द्वितीय पर शक होने कारण तोप सलामी की संख्या 17 से घटाकर 13 कर दी गई।
- कोटा महाराव रामसिंह ने मथुराधीश मंदिर के महंत गुसाई जी महाराज को मध्यस्थ बना विद्रोहियों के साथ सुलह के प्रयास किए।
- कोटा के विद्रोह का दमन H.C. रॉबर्ट्स द्वारा मार्च 1858 में किया गया तथा जयदयाल व मेहराब खान को गिरफ्तार कर दोनों पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी दे दी गई
धौलपुर में विद्रोह | Dholpur me kranti
- धौलपुर में विद्रोह का नेतृत्व रामचंद्र एवं हीरालाल ने किया तथा देव गुर्जर के नेतृत्व में सरकारी खजाने की लूटपाट की |
- धौलपुर राजस्थान की एकमात्र रियासत थी, जहाँ विद्रोह बाहर के क्रांतिकारियों (ग्वालियर, इंदौर) द्वारा किया गया तथा इस विद्रोह को बाहर की सेना ( पटियाला नरेश की सिख सेना ) के द्वारा दबाया गया।
- विद्रोही सैनिकों ने धौलपुर के राजा भगवत सिंह को घेरकर वहां किल व तोपो पर अपना अधिकार कर लिया | पटियाला नरेश की सिख सेना ने धौलपुर को क्रांतिकारी के कब्जे से मुक्त कराया |
टोंक में विद्रोह | Tonk me Kranti
- टोंक राजस्थान की एकमात्र मुस्लिम रियासत थी, उस समय टोंक का नवाब वजीरूद्दौला खां था जिसने अंग्रेजो का साथ दिया |
- टोंक के विद्रोह का नेतृत्व नवाब बजीरूदोला के मामा मीर आलम खान के नेतृत्व में हुआ |
- मोहम्मद मुजीब ने अपने नाटक ‘आजमाइस’ में लिखा है कि 1857 की क्रांति में टोंक की महिलाओं ने भी भाग लिया था |
राजस्थान में 1857 की क्रांति में का योगदान
- तात्या टोपे जी का जन्म सन 1814 में महाराष्ट्र के नासिक जिले के येवला गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
- तात्या टोपे के पिता का नाम पाण्डुरंग भट्ट व माता का नाम रूकमा देवी था
- तात्या टोपे का मूल नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग’ था लोग इन्हें प्यार से तात्या कहकर बोलते थे|
- 1857 की क्रांति के दोरान तात्या टोपे दो बार राजस्थान आये पहली बार तात्या माण्डलगढ़, (भीलवाड़ा) और दूसरी बार तात्या बांसवाड़ा में आये थे
- पहली बार : 8 अगस्त 1857 को भीलवाड़ा के कुआडा नमक इस्थान पर तात्या तोपे और जनरल राबर्ट्स की सेना की बिच युद्ध हुआ इस युद्ध में तात्या तोपे के पीछे हटना पड़ा क्योंकि बूंदी के शासक रामसिंह ने अंग्रेजों की वजह से इतिहास का साथ नहीं दिया|
- दूसरी बार : तात्या तोप राजस्थान में बाँसवाड़ा से प्रवेश कर 11 दिसंबर, 1857 को बाँसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह को पराजित कर बाँसवाड़ा राज्य पर अपना अधिकार किया और सलूंबर, होते हुए टोंक पहुंचे जहां टोंक की सेना को हराया। लेकिन ब्रिटिश अधिकारी लिन माउथ व मेजर रॉक के नेतृत्व वाली सेना ने तात्या को परास्त कर दिया।
- मानसिंह नरुका के द्वारा विश्वासघात किये जाने के करण नरवर के जंगल में तात्या टोपे को गिरफ़्तार लिया गया और 7 अप्रैल, 1859 को फाँसी पर लटका दिया गया
1857 की क्रांति बीकानेर | 1857 ki kranti bikaner
- 1857 की क्रांति में बीकानेर शासकसरदार सिंह एक मात्र राजा थे जिसने अंग्रेजों के सहयोग के लिए अपनी पाँच हजार सेना राजस्थान से बाहर भेजी थी
- अंग्रेजों ने सरदार सिंह से खुश होकर उसको टिब्बी परगने के 41 गाँव उपहार में दिए।
भरतपुर में विद्रोह | Bharatpur me kranti
- भरतपुर में क्रांति का नेतृत्व 31 मई, 1857 ई. को गुर्जर-मेवों ने किया और मेजर मॉरिसन की सेवा को पराजित किया |
- क्रांति के समय भरतपुर का राजा जसवंत सिंह नाबालिग था इसलिए यहाँ की शासन व्यवस्था मेजर मॉरीसन ने संभाल रखी थी |
अजमेर में विद्रोह | Ajmer me kranti
अजमेर के केन्द्रीय कारागार में 9 अगस्त, 1857 ई. को कैदियों ने विद्रोह कर दिया तथा 50 कैदी जेल से भाग गए। ब्रिटिश सरकार के शस्त्रागार और गोला-बारूद का भंडार अजमेर में था।
राजस्थान में 1857 की क्रांति के कारण | rajasthan me 1857 ki kranti ke karan
15 वी इन्फेंट्री बंगाल बटालियन को नसीराबाद स्थानांतरित करना
- क्रांति के समय अजमेर में 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री बोटैनिकल तैनात थी जो उस समय मेरठ से बुलाई गई थी|
- क्योंकि क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई थी बस इसी शक के चलते अंग्रेज अधिकारियों ने इस 15 में बंगाल नेटिव इन्फैंट्री बटालियन को नसीराबाद भेज दिया |
- नसीराबाद जाने के बाद में 15वीं बंगाल इन्फेंट्री बटालियन के सैनिकों में असंतोष की भावना हुई और क्रांति की शुरुआत कर दी
गाय व सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग
- उस समय सैनिकों के लिए एनफील्ड राइफल दी गई | जिसमें गाय की एवं सूअर की चर्बी वाले कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था |
- इसे हिंदू व मुस्लिम दोनों सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा यह उस समय विद्रोह का तत्कालीन कारण बना |
कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार “संरक्षण संधिया को स्वीकार करने से राजस्थान के शासक कंपनी सरकार के अधीन हो गए जिससे उनके स्वाभिमान बिल्कुल समाप्त हो गया कि वह देश प्रेम के अभाव में 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के समर्थक बन रहे|”
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Rajasthan me 1857 ki kranti FAQ
राजस्थान में विद्रोह का प्रारंभ सबसे पहले 28 may 1857 नसीराबाद छावनी ( अजमेर ) में हुई |
15वीं बंगाल इन्फेंट्री बटालियन के सैनिकों में असंतोष की भावना |
गाय व सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग स समय विद्रोह का तत्कालीन कारण बना |
ईस्ट इंडिया कंपनी का राजस्थान की रियासतों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बढ़ाने लग गया|
1857 की क्रांति के समय राजपूताना का ए.जी.जी. जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस था |इसका मुख्यालय माउंट आबू बनाया गया |
अमरचंद बांठिया 1857 की क्रांति में शहीद होने वाले पहले क्रांतिकारी थे |अमरचंद बांठिया को 1857 क्रांति का भामाशाह कहा जाता है| और इन्हें पहले शहीद होने के कारण राजस्थान का मंगल पांडे भी कहा जाता है|

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