Connect with us

Art and Culture

Rajasthan ki chitrakala | राजस्थान की चित्रकला

Published

on

Rajasthan ki chitrakala

Rajasthan ki chitrakala | राजस्थान की चित्रकला | rajasthan चित्रकला नोट्स pdf | राजस्थान की चित्रकला के प्रश्न | राजस्थानी शैली की विशेषताएं

राजस्थान की चित्रकला को अलग-अलग विद्वानों ने विभिन्न नाम से संबोधित किया है

राजस्थान की चित्रकला का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन आनंद कुमार स्वामी ने 1916 में किया इन्होंने इस कला का अध्ययन अपनी पुस्तक राजपूत पेंटिंग में किया है आनंद कुमार स्वामी ने राजपूत चित्रकला कहा है इन्हें राजस्थान चित्रकला का जनक भी कहते हैं आनंद कुमार स्वामी ने अपनी पुस्तक राजपूत पेंटिंग में चित्रकला को राजपूत चित्रकला कहा है

W.H ब्राउन ने अपनी पुस्तक इंडियन पेंटिंग में चित्रकला को राजपूत कला कहा है

N.C मेहता ने अपनी पुस्तक स्टडी इन इंडियन पेंटिंग में राजस्थान की चित्रकला को हिंदू चित्रकला कहा है

राय कृष्ण दास जी ने अपनी पुस्तक भारतीय चित्रकला में इसे राजस्थानी चित्रकला कहा है इस मत का समर्थन कर्नल टॉड ने भी किया है

आधुनिक चित्रकला का जनक कुंदन लाल मिस्त्री है

भारतीय चित्रकला का जनक रवि वर्मा (केरल)है इन्होंने महाराणा प्रताप का चित्र बनाया था|

तिब्बत के इतिहासकार तारानाथ शर्मा के अनुसार राजस्थान का प्रथम चित्रकार श्रगधर था |जिसने यश शैली के चित्र बनाए थे

राजस्थानी चित्रकला का विकास | Rajasthan ki chitrakala ka vikas

1500 ई के लगभग राजस्थानी चित्रकला Rajasthan ki chitrakala की उत्पत्ति गुजरी अपभ्रंश से मानी गई है इसका प्रारंभिक केंद्र मेवाड़ रहा इसी कारण मेवाड़ शैली को राजस्थानी चित्र शैली की जननी कहा जाता है

गुर्जर शैली → जैन शैली → गुजराती शैली → अपभ्रंश शैली → राजस्थानी शैली

कॉल खंडेलवाल के अनुसार 17 से 18वीं शताब्दी के बीच का समय राजस्थानी चित्रकला का स्वर्ण काल था 

Rajasthan ki chitrakala राजस्थानी चित्रकला की प्रमुख शब्दावलियां

फ्रेस्को : गली दीवारों पर चित्रकारी की विधि|

टेंपेरा : सुखी दीवारों पर चित्रकारी की विधि|

जोतदाना : चित्रकला में चित्रों का संग्रहण करना जो दाना कहलाता है| 

डमका : चित्र में रंग समायोजन करना

चित्रेरा: प्रसिद्ध चित्रकारों को चित्रेरा कहा जाता है

मिनिएचर पेंटिंग : सूक्ष्म वस्तुएं जैसे राय का दाना चावल गेहूं इत्यादि के दाने पर चित्रकारी की विधि |

किशन शर्मा ( बेगु,  चित्तौड़गढ़) ने राई के दाने पर संत शिरोमणि मीराबाई का चित्र बनाया | नागौर निवासि किरनकवर ने बाजरे के दाने पर चित्र बनाने में निपुणता हासिल की|  हीरालाल सोनी चावल के दाने पर चित्रकारी हेतु प्रसिद्ध|

राजस्थान के प्रसिद्ध चितेरे

भैंसों का चित्रेरा : परमानंद चोयल

नीड का चित्रेरा : सौभाग्यमल गहलोत

स्वानो का चित्रेरा : जगमोहन मथेड़िया

भिलों का चित्रेरा / बारात का चित्रेरा : बाबा गोवर्धन लाल

गांव का चित्रेरा : भूरसिंह जी

प्रकृति का चित्रेरा : देवकीनंदन शर्मा अलवर निवासी( भित्ति चित्र के सर्वश्रेष्ठ कलाकार) The Master of Nature भी कहा जाता है

राजस्थानी चित्रकला के प्राचीन स्थल / पुराने चित्रों के खोजकर्ता

रॉक पेंटिंग – आलनिया, दर्रा एवं मुकुन्दरा, चम्बल नदी किनारे| कोटा आलनिया , कोटा शेल चित्रों की प्रति जो श्रीधर बाकणकर द्वारा खोजे गए|

बैराठ सभ्यता – जयपुर से सेल चित्र एवं बौद्ध धर्म चित्रों की प्राप्ति हुई जिनकी खोज का श्रेय टॉलेमी को जाता है। इसे ‘प्राचीन युग का चित्रशाला’ कहा गया है

दर, भरतपुर: पशु पक्षियों के चित्र जो कि डॉक्टर जगन्नाथ पुरी द्वारा खोजे गए | दर (भरतपुर) से ‘पहनियों के चित्रों’ की प्राप्ति हुई है। इनकी खोज डॉ. विष्णु श्रीधर बाकणकर|

गरदडा : छज्जा नदी के तट पर बूंदी में जिनकी खोज का श्रेय पुरातत्व विभाग को जाता है

कालीबंगा (हनुमानगढ़):  से अलंकृत ईंटों के साक्ष्य मिले हैं।

Rajasthan ki chitrakala राजस्थानी चित्रकला का प्रथम चित्रित ग्रंथ दस वैकालिका सूत्र चूर्णी एवं औध निर्युक्ति वृत्ति है जो 1060 ईस्वी में ताड़ पत्रों पर चित्रित किए गए वर्तमान में यह जैसलमेर मैं स्थित जिनभद्र श्री संग्रहालय में रखे गए हैं इन दोनों ग्रंथ को भारतीय चित्रकला का द्वीप स्तंभ कहते हैं

राजस्थान में चित्रकला के प्रमुख संग्रहालय

पुस्तक प्रकाश – जोधपुर

सरस्वती भण्डार – उदयपुर

जैन भण्डार – जैसलमेर

पोथीखाना – जयपुर

राजस्थान में चित्रकला से संबंधित संस्थाएँ

राजस्थान ललित कला अकादमीजयपुर
क्रिएटिव आर्टिस्ट ग्रुपजयपुर
कलावृतजयपुर
जवाहर कला केन्द्रजयपुर
आयामजयपुर
पैगजयपुर
पश्चिमी सांस्कृतिक केन्द्रउदयपुर
टखमण – 28उदयपुर
प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुपउदयपुर
धोराजोधपुर
चितेराजोधपुर
भण्डारसोनार दुर्ग (जैसलमेर)
मयूरवनस्थली (टोंक)
राजस्थान में चित्रकला से संबंधित संस्थाएँ

राजस्थानी चित्रकला का वर्गीकरण

Rajasthan ki chitrakala राजस्थानी चित्रकला को 4 मुख्य भागों में बाँटा गया है, जिन्हें ‘स्कूल ऑफ पेंटिंग’ कहा गया है|

मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग

  • मेवाड़ चित्र शैली
  • नाथद्वारा चित्र शैली
  • चावंड चित्र शैली
  • देवगढ़ चित्र शैली

मारवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग

  • जोधपुर चित्र शैली 
  • जैसलमेर चित्र शैली 
  • बीकानेर चित्र शैली 
  • नागौर चित्र शैली 
  • किशनगढ़ चित्र शैली 
  • घाणेराव चित्रशैली
  • अजमेर चित्र शैली

ढूँढाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग

  • आमेर चित्रशैली
  • जयपुर चित्र शैली 
  • अलवर चित्र शैली 
  • उनियारा चित्र शैली 
  • शेखावाटी चित्र शैली 
  • करौली चित्र शैली

हाड़ौती स्कूल ऑफ पेंटिंग

  • बूंदी चित्र शैली 
  • कोटा चित्र शैली
  • झालावाड़ चित्र शैली

मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग | Rajasthan ki chitrakala

मेवाड़ ( उदयपुर ) चित्रशैली

प्रारंभ काल15वीं शताब्दी महाराणा कुंभा
स्वर्ण काल जगत सिंह प्रथम ( 1628-1652 ई)
प्रधान रंगपीला
मुगल प्रभावअमर सिंह प्रथम के काल में आया
यूरोपियन प्रभावस्वरूप सिंह के काल में आया
कंपनी प्रभावस्वरूप सिंह
भोग विलसता का प्रभावस्वरूप सिंह
मेवाड़ ( उदयपुर ) चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार:  साहिबद्दीन,मनोहर,कमलचन्द, कृपाराम, शाहउमरा,जीवाराम,नासिरुद्दीन,नुरुद्दीन,गंगाराम, जगन्नाथ, हीरानंद, भैरुराम,श्योबक्स 

श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी ,यह मेवाड़ चित्रशैली का सबसे प्राचीन चित्रित ग्रंथ है। यह ग्रंथ मेवाड़ शासक तेजसिंह के समय 1260-61 ई. के मध्य कमलचन्द्र नामक चित्रकार के द्वारा आहड़ (उदयपुर) में ताड़ पत्रों पर बनाया गया

सुपासनाह चरियम / सुपार्श्वनाथ चरित्रम  यह मेवाड़ चित्रशैली का दूसरा प्राचीन ग्रंथ है। यह ग्रंथ मेवाड़ महाराणा मोकल के काल मे 1426 ई. में देवकुल पाठक ने देलवाड़ा, सिरोही में चित्रित किया था।

इस चित्र शैली में कला विद्यालय की स्थापना जगत सिंह प्रथम ने करवाई जिस चितेरों की ओवरी या तस्वीराँ रो कारखानों कहते हैं

महाराणा जगतसिंह-प्रथम के काल के प्रमुख चित्र रागमाला, रसिकप्रिय, भगवद्पुराण, एकादशी महात्म्य , मालती माधव, पृथ्वीराज री बेल, गीत गोविन्द,रामायण (मनोहर), साहिबद्दीन ने 1655 ई. में ‘शूकर क्षेत्र महात्म्य’ एवं ‘भ्रमरगीत’ जैसे चित्रों की रचना की थी।

साहिबद्दीन और मनोहर ने महाराणा जगतसिंह के समय ही कृष्ण चरित्र की भाँति रामचरित्र का चित्रांकन हुआ था।

विष्णु शर्मा रचित पंचतंत्र कहानी का चित्रण नूरुद्दीन नमक चित्रकार ने मेवाड़ चित्र शैली में किया है इस कहानी में कलीला-दमना नामक दो गीदड़ों की एक कहानी  का वर्णन है

कवि नरोत्तम शर्मा द्वारा बनाया गया मुरली मनोहर का चित्र मेवाड़ की मोनालिसा कहलाता है

इस शैली में रामायण का चित्र मनोहर नमक चित्रकार ने बनाया| इस शैली में भागवत पुराण का चित्र नानक राम ने बनाया

 मेवाड़ चित्र शैली को सभी चित्र शैलियों की जननी कहा जाता है इसलिए सर्वप्रथम अजंता प्रभाव इसी शैली पर आया | महाराणा जयसिंह के काल में अधिक मात्रा में लघु चित्रों का निर्माण हुआ। महाराणा हम्मीर के काल में ‘बडे़ पन्नों’ पर चित्र बनाने की परंपरा शुरू हुई।

महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (1710-34 ई.) के समय प्रमुख चित्रकार नुरुद्दीन था, जिसने विष्णु शर्मा द्वारा रचित ‘पंचतंत्र‘ पर अनेक चित्र बनाए।

चित्रकला विषय : श्रीमद् भागवत, शिकार के दृश्य,कृष्णलीला, सूरसागर, गीतगोविंद,दरबार के दृश्य|

नाथद्वारा चित्रशैली

प्रारंभ काल महाराणा राजसिंह (1652-80 ई.)
स्वर्ण काल राज सिंह
प्रधान रंगहरा पीला
सर्वाधिक प्रभाववल्लभ सम्प्रदाय
उपनामवल्लभ चित्रशैली
मुख्य विषयश्रीकृष्ण और यशोदा
नाथद्वारा चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार: नारायण,भगवान,चम्पालाल,तुलसीराम,हीरालाल,हरदेव, विट्‌टल, चतुर्भुज, घासीराम,उदयराम, नारायण, देवकृष्ण 

महिला चित्रकार: कमला वं ईलायची|

प्रमुख विशेषताएँ :श्रीनाथजी का चित्रण, गायों का मनोरम अंकन, बाल ग्वाल, भित्ति चित्र, केले के वृक्ष।
पिछवाइयाँ – श्रीनाथजी के स्वरूप के पीछे, बडे़ आकार के कपडे़ के पर्दे पर बनाए गए चित्र।

देवगढ़ चित्रशैली

प्रारम्भ कालरावल द्वारकादास चूंडावत
स्वर्ण कालजय सिंह
देवगढ़ चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार: बगला, कँवला, हरचंद, नंगा, चोखा, बैजनाथ

इस चित्रशैली को प्रकाश में लाने का श्रेय डॉ.श्रीधर अंधारे को जाता है।

प्रमुख चित्र अजारा हवेली व मोती महल के भित्ति चित्र इस शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं 

देवगढ़ चित्रशैली पर मेवाड़ + मारवाड़ + ढूँढाड़ शैलियों का प्रभाव पड़ा, जिस कारण इसे मिश्रित शैली भी कहा जाता है।

विषय :  हाथियों की लड़ाई के दृश्य ,राजदरबार के दृश्य, शिकार के दृश्य, शृंगार, वल्लभ सम्प्रदाय से संबंधित|

चावण्ड चित्रशैली

प्रारंभ काल महाराणा प्रताप (1585 ई.)
स्वर्णकाल महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.)
प्रधान रंगपीला
चावण्ड चित्रशैली (राजस्थान की चित्रकला)

1592 ई. में महाराणा प्रताप के काल मे निसारुदीन ने ‘ढोलामारू’ का चित्र बनाया था, जो वर्तमान में दिल्ली संग्रहालय में सुरक्षित है।

अमरसिंह के काल में 1605 ई. में निसारदीन ने ‘रागमाला सेट‘ नामक ग्रंथ का चित्रण किया था।

मारवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग | Rajasthan ki chitrakala

मारवाड़ ( जोधपुर ) चित्रशैली

प्रारंभ कल राव मालदेव
स्वर्णकालमानसिंह राठौर || जसवंत सिंह प्रथम
रंगपीले रंग की प्रधानता
मुगल शैली का प्रभाव मोटाराजा उदयसिंह प्रथम
कम्पनी शैली का प्रभावमहाराजा तख्तसिंह
वैष्णव प्रभावविजय सिंह के काल में
यूरोपियन प्रभावतखत सिंह के काल में
मारवाड़ ( जोधपुर ) चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार: वीरजीदास भाटी, नारायणदास भाटी, कालूराम,रामसिंह भाटी, रामा, नाथा, छज्जू भाटी, रतनजी भाटी, अमरदास, बिशनदास, शिवदास, फतेह मोहम्मद, चाँद तैय्यब।

जोधपुर शैली का प्रथम चित्रित ग्रंथ उत्तरध्यायन सूत्रचुन्नी है

राम-रावण युद्ध का चित्र , सप्त सती का चित्र | यह दोनों मारवाड़ शैली के आरम्भिक चित्र हैं। जो मालदेव के काल में चोखेलाव महल की दीवारों पर बने हुए हैं

ढोला मारू के सर्वाधिक चित्र जोधपुर शैली में बने हैं
रागमाला सेट: चित्रकार वीरजीदास भाटी
रसराज का चित्र: मतिराम द्वारा रचित
द महाराज आफ जोधपुर द गैलेक्सी लिव्ज ओंन: अनु मल्होत्रा द्वारा बनाया गया गजसिंह द्वितीय का चित्र है जिसे डिस्कवरी पर कई बार प्रदर्शित किया गया है
नाथ संप्रदाय का प्रभाव – महाराजा मानसिंह (संन्यासी राजा)
महाराजा मानसिंह के काल में जोधपुर शैली नाथों के मठों में विकसित हुई।

प्रमुख चित्रित ग्रंथ एवं विषय : , भागवत, पंचतंत्र,नाथ चरित्र,मूमलदे, निहालदे, लोकगाथाएँ, ढोला मारु, सूरसागर, रसिकप्रिया, रागमाला (वीरजी),
मारवाड़ या जोधपुर शैली की विशेषताएँ : आम का वृक्ष , छोटी-छोटी झाड़ियां, भागते हिरण ,दौड़ते खरगोश मरुस्थल, घोडे़,बादाम के समान नेत्र|

बीकानेर चित्रशैली

प्रारम्भ कालमहाराजा रायसिंह , कल्याण मल
स्वर्ण काल अनूप सिंह
प्रधान रंगबैंगनी , पीले रंग
प्रथम चित्रित ग्रन्थभागवत पुराण
रागमाला सेट नूर मोहम्मद
कम्पनी शैली का प्रभावमहाराजा सूरतसिंह
द्रविड़ शैलीअनूप सिंह
बीकानेर चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार: मुन्नालाल, मुकुंद, चंदुलाल 

महाराजा रायसिंह के काल में इस शैली में ‘धार्मिक चित्रों’ का सर्वाधिक चित्रण हुआ।
‘उस्ता कला’ व ‘मथैरणा कला’ का उद्गम व विकास महाराजा अनूपसिंह के शासनकाल में हुआ।
उस्ता कला : ऊँट के खाल तथा कूम्पों पर सोने की नक्काशी।
प्रमुख कलाकार : अलीरजा, साहिबद्दीन, कायम खाँ, रुक्नुद्दीन, हिसामुद्दीन उस्ता (पद्म श्री से सम्मानित)।
मथैरणा कला: यह बीकानेर के स्थानीय चित्रकारों की कला है।
इस कला के चित्रकार ‘मथैरण’ जैन समाज के लोग होते हैं।
इस कला में देवी-देवताओं का भित्ति-चित्रण करते हैं।

विशेषता :  बीकानेर चित्रशैली में ‘घोडे़’ का सर्वाधिक चित्र।  बालू के टीलों का अंकन लम्बी इकहरी नायिकाएँ मेघमंडन, पहाड़ों और फूलपत्तियों का आलेखन|

बीकानेर शैली के चित्रकार, चित्रों के साथ अपना नाम व तिथि अंकित करते थे। बीकानेर शैली के चित्रकार उस्ताज कहलाते थे

किशनगढ़ चित्रशैली

आरम्भ काल महाराजा सावंतसिंह ( नागरीदास )
स्वर्ण कालमहाराजा सावंतसिंह ( नागरीदास )
रंगश्वेत, गुलाबी व लाल।
किशनगढ़ चित्रशैली

 डॉ.फैय्याज अली व एरिक डिक्सन : प्रकाश में लाने का श्रेय|

उपनाम :  बणी-ठणी, भारतीय कला इतिहास का लघु आश्चर्य, चित्रों का अमूर्त स्तन

प्रमुख चित्रकार : नानकराम,लाडलीदास, मोरध्वज निहालचंद, सीताराम, रामनाथ, बदनसिंह, सूरध्वज, अमीरचन्द, तुलसीदास, तिलक गिताई( 2017 पद्मश्री).

विशेषताएँ : नारी सौन्दर्य का चित्रण प्रमुख विशेषता। किशनगढ़ चित्रशैली के प्रमुख चित्रों में वृक्ष, पक्षी आदि शामिल हैं। वल्लभ सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रभाव होने के कारण कृष्ण-लीलाओं का अधिक चित्रण हुआ। इस शैली में ‘कांगडा शैली’ का प्रभाव। प्रेम-रस पर आधारित शैली। उभरी हुई ठोडी, नेत्रों की खंजनाकृति बनावट, धनुषाकार भौंए, सुरम्यसरोवरों का अंकन इस चित्रशैली के चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ हैं। 

बणी-ठणी : किशनगढ़ चित्रशैली का प्रमुख चित्र।
उपनाम : रसिकप्रिया, उत्सव प्रिया ,नगर रमणी ,लवलीज
चित्रकार: – मोरध्वज निहालचंद (लियोनार्दो-द-विंची)। एरिक डिक्सन ने इस चित्र को ‘भारत की मोनालिसा’ कहा।
चाँदनी रात की संगोष्ठी : चित्रकार – अमीरचंद।

जैसलमेर शैली या मांड शैली

मरुस्थल, झाड़ियों और ऊँटों का चित्रण मिलता हैं।
इस शैली के भित्ति चित्र हवेलियों पर चित्रित है – नथमल की हवेली, पटवों की हवेली और सालिम सिंह मेहता की हवेली।
मूमल: का चित्रण जैसलमेर शैली का मुख्य विषय था।

अजमेर चित्रशैली

बैंगनी रंग की प्रधानता

जोधपुर शासक मालदीव राठौर के काल में इस शैली की शुरुआत हुई| इस शैली में गांव व ठिकानों के सर्वाधिक चित्र बने हैं मसूदा, कैकड़ी, भिनाय ठिकानों में भित्ति चित्र इसी शैली के हैं।

प्रमुख चित्रकार: चाँद, रामसिंह भाटी, लालजी, नारायण भाटी, माधोजी,अल्लाबक्स और तैय्यब
महिला चित्रकार – साहिबा
जूनियाँ के चाँद द्वारा चित्रित राजा पाबूजी का 1698 ई. का व्यक्ति चित्र इस चित्रशैली का सुन्दर उदाहरण है।
AH मूलर ने दुर्गादास राठौड़ का चित्र बनाया
अजमेर शैली में सोनी जी की नसिया में जैन धर्म के चित्र बने हैं

शेखावाटी चित्रशैली

इस शैली का प्रारंभ काल व स्वर्ण काल जहांगीर का काल है यह चित्र शैली हवेलियों के भित्ति चित्र हेतु प्रसिद्ध है शेखावाटी क्षेत्र में सर्वाधिक आकर्षक चित्र उदयपुरवाटी झुंझुनू स्थित जोगीदास की छतरी पर है जिसका चित्रकार देवा है

प्रमुख चित्र: रेलगाड़ी ,मोटर गाड़ी, चील गाड़ी लैला मजनू हीर रांझा जवाहर जी डूंगर जी प्रमुख चित्रकार बालूराम जयदेव तनसुख

चित्रकार की विधियां: अराईस / पढा चित्रों को चिरकाल तक सुरक्षित रखने की एक पद्धति जिसके अंतर्गत चुने की प्लास्टर वाली दीवालो पर चित्रकारी की जाती है

आल्हा गिला/ फ्रेस्को : यह मूलत: इटली की विधि है जिसके तहत गीली दीवारों पर चित्रकारी होती है

टेंपरा :सुखी दीवारों पर चित्रकारी इस शैली में सामान्य जनजीवन का चित्रण किया गया। बलखाते बालों का दोनों तरफ चित्रण इस शैली में हुआ।

शेखावाटी शैली के भित्ति चित्र हवेलियों पर उपलब्ध है।

घाणेराव चित्रशैली

चित्रकार : नारायण, छज्जू और कृपाराम।

ढूँढाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग | Rajasthan ki chitrakala

यह स्कूल आदमकदपोर्ट्रेट चित्रों हेतु प्रसिद्ध है

आमेर चित्रशैली

प्रारम्भ काल मिर्जा राजा मानसिंह 1
स्वर्णकाल मिर्जाराजा जयसिंह 1
प्रधान रंगगेरुआ
आमेर चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार :पुष्पदत्त, मुरली, मुरारी हुकम चंद, मनीराम

सफेदा वृक्ष ,बिहारी सतसई ग्रंथ व रज्जब नाम के 69 चित्र इस शैली में बने हैं

Note : महाभारत का फारसी अनुवाद रज्जब नाम कहलाता है महाभारत का राजस्थानी अनुवाद खेती संधू ने भाषा भारत के रूप में किया है

चित्रकार पुष्पदत्त ने “आदि पुराण” नामक ग्रन्थ का चित्रण किया। चित्रकार मुरली ने ‘बिहारी सतसई’ ग्रन्थ का चित्रण किया।

आरम्भ से ही मुगल शैली का प्रभाव 

जयपुर चित्रशैली

प्रारम्भ कालसवाई जयसिंह-द्वितीय
स्वर्ण कालसवाई प्रताप सिंह
प्रधान रंगप्राकृतिक रंग
जयपुर चित्रशैली

सवाई प्रताप सिंह इनके काल में 22 चित्रकार, 22 कवि, 22 संगीतकार , 22 विद्वानों की मंडली ‘गंधर्व बाईसी‘ थी।

प्रमुख चित्रकार : रामसेवक, साहिबराम,गोपाल, चिमना, हुकमा, सालिगराम, लालचन्द, घासीदास, त्रिलोक,, मोहम्मद शाह
सवाई रामसिंह द्वितीय : कम्पनी शैली का प्रभाव।मोहम्मद शाह (सवाई जयसिंह-द्वितीय का दरबारी चित्रकार) ने ‘रज्मनामा’ ग्रन्थ चित्रित करके सवाई जयसिंह-द्वितीय को भेंट किया।

हवामहल में प्रतापसिंह ने ‘सूरतखाना’ नामक चित्रकला का विभाग बनाया।
प्रतापसिंह ने चित्रकारों को राजकीय संरक्षण दिया।
प्रमुख चित्र: 
गंगावन युद्ध सवाई जयसिंह व जोधपुर शासक अभय सिंह के मध्य हुआ जिसका चरित्र लालचंद ने बनाया
तेल का चित्र सत्यनारायण नमक चित्रकार ने बनाया|
ईश्वरी सिंह का आदमकद चित्र साहिबराम ने बनाया जो सिटी पैलेस में रखा गया है
सवाई जयसिंह ने लघु चित्रों के विकास हेतु सूरतखाना का निर्माण करवाया जहां प्रताप सिंह के काल में सर्वाधिक लघु चित्र बने
1857 ईस्वी में राम सिंह द्वितीय ने चित्रकारों के प्रशिक्षण हेतु मदरसा ए हनरी की स्थापना की जिसे वर्तमान में आर्ट एंड क्राफ्ट स्कूल कहते हैं
‘राधा-कृष्ण का नृत्य’ (साहिबराम द्वारा चित्रित), ‘सवाई प्रतापसिंह का आदिम चित्र’ (साहिबराम द्वारा चित्रित)
विशेषता : महफिलें,शाही सवारी,  राग-रंग, शिकार, बारहमासा, गीत गोविंद, रामायण, आदमकद चित्रण , भित्ति चित्रण , हाथियों का चित्रण,  सोना-चाँदी का प्रयोग ,शहजादियों का चित्रण, पुरुष की बलिष्ठता और महिलाओं की कोमलता|
इस शैली में आरम्भ से ही मुगल शैली का सर्वाधिक प्रभाव था।

जयपुर शैली में व्यक्ति का चित्रण हुआ है इसे ‘सबीह’ शैली कहा जाता है।

अलवर चित्रशैली

प्रारंभ कालप्रताप सिंह || बख्तावर सिंह
स्वर्ण कालविनय सिंह
प्रधान रंगसोने चांदी का रंग
अलवर चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार : डालूराम, बलदेव, नानकराम, नंदलाल, मूलचंद सोनी, छोटेलाल, जमनालाल, बक्साराम

राजगढ़ के महलों में ‘शीशमहल’ का चित्रण, राव बख्तावरसिंह के द्वारा करवाया गया, यहीं से चित्रकला की ‘अलवर शैली’ का विकास हुआ।

अलवर शैली में ‘वैश्याओं के चित्र’ सर्वाधिक चित्रित किए गए।

गुलाम अली +बलदेव ने ‘गुलिस्ता की पांडुलिपि’ नामक पुस्तक का चित्रण किया।

हाथी दांत पर चित्रकारी : मूलचंद चित्रकार

वेश्याओं के चित्र ,योगासन के चित्र, वट वृक्ष के चित्र |

राजस्थान की इस शैली पर सर्वाधिक यूरोपीय प्रभाव दिखाई देता है

महाराजा शिवदान सिंह के समय ‘कामशास्त्र’ के आधार पर चित्रण हुआ।

प्रमुख विशेषताएँ अलवर शैली में ‘बॉर्डर’ को महत्त्व दिया गया। बार्डर को महत्त्व देने वाली शैली को ‘बैसलो शैली’ कहते हैं।

उणियारा (टोक) चित्रशैली

प्रारंभ कालसरदार सिंह
स्वर्ण कालसंग्राम सिंह
प्रधान रंगहरा
उणियारा (टोक) चित्रशैली

चित्रकार : धीमा, मीरबक्श, उगमा, काशी, लखन

यहां सर्वाधिक क्षेत्र मीरबक्स ने बनाए थे| राम सीता लक्ष्मण व हनुमान के चित्र बने हैं

जयपुर शैली तथा बूँदी शैली का मिश्रण |

हाड़ौती स्कूल ऑफ पेंटिंग | Rajasthan ki chitrakala

बूँदी चित्रशैली

प्रारंभ कालराव सुर्जन
स्वर्णकाल उम्मेदसिंह
प्रधान रंगहरा
उपनामपशु-पक्षियों की चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार : सुर्जन, अहमद, डालूं ,श्रीकिशन, रामलाल, साधुराम, अहमद अली

विशेषता : सोने-चाँदी के रंगों की प्रधानता,   वर्षा ऋतु में नाचते हुए मोर के चित्र ,अंग्रेज दंपत्ति द्वारा पियानो बजाता हुआ चित्र | उम्मेद सिंह द्वारा निर्मित चित्रशाला महल को भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहते हैं चित्र शाला में उम्मेद सिंह को सूअर का शिकार करते हुए दर्शाया गया है

सूर्यमल मिश्रण के ग्रंथ के चित्र भी इस शैली में बने हैं सूर्यमल मिश्रण राम सिंह प्रथम के दरबारी विद्वान थे |

बूंदी चित्र शैली में रंग महल का निर्माण छत्रसाल ने करवाया| इस शैली में भोग विलासता का प्रभाव भावसिंह के काल में आया| राजस्थानी विचारधारा की प्रारंभिक चित्र शैली बूंदी चित्र शैली है

कार्ल खण्डेलवाल ने बूँदी शैली पर अध्ययन किया और ‘बूँदी ग्रन्थावली’ नामक ग्रन्थ लिखा।

कोटा चित्रशैली

प्रारंभ कालमहाराव रामसिंह प्रथम
स्वर्णकाल उम्मेदसिंह
उपनामशिकार शैली
कोटा चित्रशैली

प्रमुख चित्रकार : डालू, लच्छीराम, रामजीराम, गोविन्द, रघुनाथ, नूर मोहम्मद

प्रमुख विषय : आखेट या शिकार, जुलूस, युद्ध के दृश्य।

महाराव भीमसिंह के समय कृष्ण-लीलाओं का अधिक चित्रण हुआ। 

झाला झालम सिंह की हवेली भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।

डालू द्वारा 1768 ई. में सबसे बड़ा रागमाला सेट को चित्रित किया था। महिलाओं द्वारा शिकार के चित्र भी इस शैली में बने हैं राम द्वारा हिरण के शिकार का चित्र झाला हवेली के भित्ति चित्र दशहरा महोत्सव ‘नहाढ महोत्सव ,नदियों का संगम इत्यादि चित्र भी कोटा शैली की विशेषताएं

 झालावाड़ शैली

झालावाड़ के राजमहलों में श्रीनाथजी, राधाकृष्ण लीला, रामलीला, राजसी वैभव के जो भित्ति-चित्र मिलते हैं,

Rajasthan ki Chitrakala Mock Test, Quiz राजस्थान की चित्रकला के प्रश्न

Join Free Test Series of Rajasthan Gk राजस्थान की चित्रकला के प्रश्न Click Here

Rajasthan ki chitrakala FAQ

राजस्थान की कौनसी चित्रकला शैली?

1500 ई के लगभग राजस्थानी चित्रकला की उत्पत्ति गुजरी अपभ्रंश से मानी गई है इसका प्रारंभिक केंद्र मेवाड़ रहा इसी कारण मेवाड़ शैली को राजस्थानी चित्र शैली की जननी कहा जाता है

राजस्थान में चित्रकला का जनक कौन है?

राजस्थान की चित्रकला का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन आनंद कुमार स्वामी ने 1916 में किया इन्होंने इस कला का अध्ययन अपनी पुस्तक राजपूत पेंटिंग में किया है आनंद कुमार स्वामी ने राजपूत चित्रकला कहा है इन्हें राजस्थान चित्रकला का जनक भी कहते हैं

राजस्थान की प्रमुख चित्र शैलियां कौन सी हैं?

मेवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग
मेवाड़ चित्र शैली, नाथद्वारा चित्र शैली, चावंड चित्र शैली ,देवगढ़ चित्र शैली
मारवाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग
जोधपुर चित्र शैली, जैसलमेर चित्र शैली, बीकानेर चित्र शैली, नागौर चित्र शैली, किशनगढ़ चित्र शैली
ढूँढाड़ स्कूल ऑफ पेंटिंग
आमिर चित्र शैली, जयपुर चित्र शैली, अलवर चित्र शैली ,उनियारा चित्र शैली
हाड़ौती स्कूल ऑफ पेंटिंग
बूंदी चित्र शैली, कोटा चित्र शैली, झालावाड़ चित्र शैली

राजस्थान में चित्रकला की शुरुआत कब हुई?

1500 ई के लगभग राजस्थानी चित्रकला की उत्पत्ति गुजरी अपभ्रंश से मानी गई है
गुर्जर शैली → जैन शैली → गुजराती शैली → अपभ्रंश शैली → राजस्थानी शैली

राजस्थानी चित्रकला की मुख्य विशेषताएं क्या है?

पशु-पक्षियों की चित्रशैली,आखेट या शिकार, मोर का चित्रण राज्य के सभी शैलियों में हुआ है
मुगल शैली का प्रभाव,आदमकद चित्रण , भित्ति चित्रण , हाथियों का चित्रण

ढोला मारू कौन सी शैली का चित्र ग्रंथ है?

ढोलामारू का चित्रण जोधपुर शैली का मुख्य विषय था।
मूमल का चित्रण जैसलमेर शैली का मुख्य विषय था।

राजस्थान का प्रथम चित्र ग्रंथ कौन सा है?

राजस्थानी चित्रकला का प्रथम चित्रित ग्रंथ दस वैकालिका सूत्र चूर्णी एवं औध निर्युक्ति वृत्ति है जो 1060 ईस्वी में ताड़ पत्रों पर चित्रित किए गए वर्तमान में यह जैसलमेर मैं स्थित जिनभद्र श्री संग्रहालय में रखे गए हैं इन दोनों ग को भारतीय चित्रकला का द्वीप स्तंभ कहते हैं

Hi my name is Deep sharma my profession is web development.. I made many blogs for other people. Then I thought about my blog that why not have my blog too. Then I started govtexamresults . When I wrote the first post, I found it very strange and difficult but now I enjoy writing posts. Slowly my content is improving and I publish valuable content for you. Please support us And also follow on social media...... Thanks

Advertisement
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular