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Rajasthan Ke Sant Sampraday | राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय

Rajasthan ke sant sampraday | राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय | राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय PDF | राजस्थान के निर्गुण संत | राजस्थान के सगुण संत | मुस्लिम धर्म के प्रमुख संत
राजस्थान में सर्वाधिक जनसंख्या वैष्णव सम्प्रदाय को मानने वालों की है वैष्णव अर्थात भगवान विष्णु की पूजा । वैष्णव के अलावा राजस्थान में शैव सम्प्रदाय और अन्य संप्रदाय भी प्रचलित है राजस्थान के सम्प्रदायों को मुख्यतः उनकी उपासना उनके नियम उनकी साधना के आधार पर 2 भागों में विभक्त किया जा सकता है
(1) सगुण भक्ति एवं (2) निर्गुण भक्ति
राजस्थान में सगुण भक्ति परंपरा : सगुण सम्प्रदाय के अंतर्गत मूर्तिपूजा भजन कीर्तन माला मंदिर में मूर्ति की पूजा करना इस तरह से ईश्वर की मूर्त रूप में पूजा की जाती है
राजस्थान में सगुण संप्रदाय के नाम
Rajasthan Ke Sant Sampraday गौड़ीय सम्प्रदाय, चरणदासी सम्प्रदाय, गूदड़ सम्प्रदाय, धन्नावँशी सम्प्रदाय, नाथ सम्प्रदाय, निम्बार्क सम्प्रदाय, अलगया सम्प्रदाय, रामानुज संप्रदाय, निष्कलंक सम्प्रदाय, पाशुपत या शैव सम्प्रदाय, रामानुज संप्रदाय, रामानंदी संप्रदाय, रामावत साध, बल्लभ सम्प्रदाय, मीरादासी सम्प्रदाय
सगुण भक्ति वाले संत : मीराबाई ,गवरी बाई( बांगड़ की मीरा), भक्त कवि दुर्लभ, रानाबाई ,कर्मा बाई ,फूलाबाई, भूरी बाई अलख इत्यादि
राजस्थान में निर्गुण सम्प्रदाय : निर्गुण सम्प्रदाय निर्गुण संप्रदाय के अंतर्गत माला भजन कीर्तन मूर्तिपूजा आदि का विरोध कर ईश्वर की निराकार रूप में पूजा की जाती है
राजस्थान और निर्गुण सम्प्रदाय के नाम
कबीरपंथी सम्प्रदाय, जसनाथी सम्प्रदाय, निरंजनी सम्प्रदाय, दादू सम्प्रदाय, रामस्नेही सम्प्रदाय ,प्रणामी संप्रदाय, विश्नोई सम्प्रदाय, लालवानी सम्प्रदाय
निर्गुण भक्ति संप्रदाय के संत: जांभोजी , जसनाथ जी, रामचरण जी, दरियाव जी, हरिराम जी, रामदास जी, दादू दयाल जी, सुंदर दास जी, रज्जब जी, बखना जी, लाल दास जी ,संतदास जी, लाल गिरी जी, कबीर, सधना जी, संत पीपा, संत धन्ना ,संत रैदास इत्यादि
वैष्णव सम्प्रदाय ( राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय )
- वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक यमुनाचार्य
- भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा की जाती है
- अनुयायी आलवार कहलाते हैं
- वैष्णव संप्रदाय की उत्पत्ति दक्षिण भारत से मानी जाती है
- विरोध नरबलि पशुबलि भयावह कर्मकाण्ड
- समर्थन : संगीत नृत्य भजन कीर्तन
- भागवत संप्रदाय का सम्बन्ध भी वैष्णव संप्रदाय से ही माना जाता है
- राजस्थान में वैष्णव धर्म का सर्वोत्तम उल्लेख द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के घोसुंडी शिलालेख से मिलता है
वैष्णव धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय
- रामानुज संप्रदाय
- रामानंदी संप्रदाय
- निम्बार्क सम्प्रदाय
- बल्लभ सम्प्रदाय
- गौड़ीय सम्प्रदाय
1. रामानुज संप्रदाय | Ramanuj Sampraday
रामानुज संप्रदाय में प्रभु श्रीराम को परम ब्रह्म मानकर पूजा की जाती है इस संप्रदाय को रामावत सम्प्रदाय भी कहा जाता है
प्रवर्तक : रामानुजाचार्य
प्रधानपीठ : गलताजी जयपुर
रामानुजाचार्य रामानुजाचार्य जी ने विशिष्टाद्वैत मत चलाया | रामानुज संप्रदाय केवल दक्षिण भारत तक ही सीमित रहा| रामानुज सम्प्रदाय के प्रमुख केन्द्र श्रीरंगपट्टम एवं कांची थे | रामानुज के प्रमुख शिष्य रामानन्द हुए इस संप्रदाय का सर्वाधिक प्रचार रामानन्द जी ने किया जिन्होंने आगे चलकर रामानन्द सम्प्रदाय की स्थापना की|
2. रामानन्द सम्प्रदाय | Ramanand Sampraday
रामानंद जी का जन्म इलाहाबाद से माना जाता है
रामानंद जी दक्षिण भारत से भक्ति आन्दोलन को उत्तरी भारत ले के आये इसी कारण उत्तरी भारत में इन्हें भक्ति आन्दोलन का प्रवर्तक माना जाता है
रामानुज संप्रदाय में भक्ति का भाव दास्य भाव एवं ज्ञानमार्गी भक्ति का भाव था | रामानन्द जी ने हिन्दी में उपदेश दिए |
उत्तर भारत में रामानन्द जी के शिष्य रामानंदी कहलाए | रामानन्द सम्प्रदाय को रसिक सम्प्रदाय भी कहा जाता है| रामानन्द जी ने ऊंच नीच भेदभाव को मिटाकर समाज को एकता के रूप में बांधने का प्रयास किया रामानन्द जी के प्रमुख 12 शिष्य व 1 शिष्या थी
रामानंद जी के शिष्य
संत कबीर ( मुस्लिम / हिन्दू ) , सदना जी ( कसाई ), सेना जी ( नाई ) , संत पीपाजी ( राजपूत ) संत धन्नाजी ( जाट ) , संत रैदास ( चमार ) | ये सभी निर्गुण भक्ति वाले संत हुए | अनन्तानन्द के गुरु भी रामानन्द थे
कृष्णदास पयहारी
- केवल दूध पीने के कारण पैयहारी कहलाए |
- कृष्णदास पयहारी अनंतानन्द जी के शिष्य थे | गलताजी , जयपुर में नाथ संप्रदाय के चतुर्नाथ को शास्त्रार्थ में हराया और गलताजी जयपुर में रामानुज रामानन्द सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ की स्थापना की |
- उत्तर भारत में रामानुज संप्रदाय और रामानन्द सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र उत्तर तोताद्रि गलताजी जयपुर है कृष्णदास पयहारी के शिष्य अग्रदासजी हुए|
अग्रदासजी
- अग्रदासजी ने राम को कृष्ण की तरह रसिक मानकर उनकी पूजा की|
- इनका सम्प्रदाय रसिक सम्प्रदाय कहलाया | रसिक संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ ध्यानमंजरी अग्रदास द्वारा रचित|
- अग्रदासजी ने रामानुज संप्रदाय कि अन्य पीठ रैवासा सीकर में स्थापित की|
- अग्रदास जी के शिष्य किल्हण दास जी हुए | किल्हण दास जी ने रसिक सम्प्रदाय में सीताराम जी को राधा कृष्ण की तरह युगल जोड़ी में मानकर पूजा की |
3. निम्बार्क सम्प्रदाय | Nimbark Sampraday
- निम्बार्क सम्प्रदाय के अन्य उपनाम नारद सम्प्रदाय, हंस सम्प्रदाय ,सनक सम्प्रदाय, राधा बल्लभ सम्प्रदाय |
- निम्बार्क सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य निम्बार्क थे |
- निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ वेदान्त परिजात है
- निम्बार्काचार्य ने द्वैताद्वैत या भेदाभेद मत चलाया |
- निम्बार्क सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ सलेमावाद अजमेर में स्थित है|
- निम्बार्क सम्प्रदाय में राधाकृष्ण की युगल रूप में पूजा की जाती है
- परशुराम देव ने राजस्थान में सलेमाबाद अजमेर स्थान(रूपनगढ़ नदी के किनारे ) पर पीठ की स्थापना कर संप्रदाय का प्रचार प्रसार किया मारवाड़ में निम्बार्क सम्प्रदाय को नीमावत साध के नाम से भी जाना जाता है
- निम्बार्क सम्प्रदाय के अन्य पीठ आहड़ उदयपुर में भी स्थित है
4. वल्लभ सम्प्रदाय | Vallabh Sampraday
वल्लभ सम्प्रदाय पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय
वल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामीवल्लभाचार्य थे
वल्लभ संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ अणुभाष्य
वल्लभाचार्य ने शुद्धाद्वैतवाद का मत दिया
वल्लभ सम्प्रदाय को पुष्टिमार्ग संप्रदाय भी कहा जाता है पुष्टिमार्ग का अर्थ होता है ईश्वर की कृपा
वल्लभाचार्य विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेवराय के दरबार में उनके गुरु बनकर रहे
बल्लभाचार्य के पुत्र का नाम बिट्ठलदास जी था बिट्ठलदास ने अष्टछाप कवि मंडली की स्थापना की ( 8 कवियों का संगठन ) अकबर ने उसी मंडली से प्रभावित होकर जैतपुरा व गोकुल 2 जागीरें इस संप्रदाय को भेंट कर दी |
अष्टछाप कवि मंडली के संत कुंभनदास ,सूरदास, परमानन्ददास, कृष्णदास, नंददास ,चतुर्भुजदास, गोबिन्दस्वामी, छीतस्वामी बल्लभ सम्प्रदाय में भगवान कृष्ण के बाल रूप में पूजा की जाती है
भगवान के बालरूप को श्रीनाथ कहा जाता है लगभग 1669 ई. मेवाड़ महाराजा राजसिंह के समय दामोदर व गोबिन्द नाम के 2 पुजारियों द्वारा औरंगजेब के डर से इस मूर्ति को मारवाड़ लाया गया
सियाड ( सिहाड ) गांव में वल्लभ संप्रदाय की प्रमुख पीठ बनाई गई | 1671 और 72 में महाराणा राज सिंह द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठित की गई|
पिछवाईयां व सांझी प्रसिद्ध , मेला जन्माष्टमी भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को लगता है श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा राजसमंद में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन दीपावली के दूसरे दिन किया जाता है| इस दिन अन्नकूट का प्रसाद बांटा जाता है|
7 ध्वजा का स्वामी श्रीनाथ जी को कहा जाता है| वल्लभ सम्प्रदाय में झांकी को दर्शन , पुष्टि को कृपा , हवेली को मंदिर कहा जाता है
बल्लभ सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ ( Rajasthan Ke Sant Sampraday )
- श्रीनाथ जी का मन्दिर : नाथद्वारा राजसमंद ( प्रधान पीठ )
- द्वारकाधीश मंदिर : कांकरोली राजसमंद
- मदनमोहन जी का मन्दिर : कामा भरतपुर
- गोकुलचन्द्रजी का मंदिर : भरतपुर
- मथुराधीश मन्दिर : कोटा ( राजस्थान में बल्लभ सम्प्रदाय की प्रथम पीठ )
- गोकुल नाथ जी का मन्दिर : गोकुल यूपी
- बालकृष्ण जी का मन्दिर : सूरत गुजरात
5. गौड़ीय सम्प्रदाय | Godiya Sampraday
- गौड़ीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक स्वामी माधवाचार्य गोड स्वामी के नाम पर यह गौड़ीय सम्प्रदाय कहलाया|
- इस सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रचार गौरांग महाप्रभु ने किया था | इन्हें चैतन्य महाप्रभु भी कहा जाता है |
- प्रमुख पीठ वृंदावन गोंद देव जी का मंदिर ।
- राधा गोविंद जी का मन्दिर निर्माण मिर्जा राजा मानसिंह |
- राजस्थान में प्रमुख पीठ जयपुर गोविंद देव जी का मन्दिर निर्माण कार्य सवाई राजा जयसिंह |
- गौड़ीय सम्प्रदाय की अन्य पीठ मदनमोहन जी का मन्दिर करौली में है|
- आमेर के राजा मानसिंह गौड़ीय संप्रदाय के अनुयायी थे |
- गौरांग महाप्रभु बंगाल में कृष्ण के अवतार के रूप में माने जाते हैं
शैव सम्प्रदाय
भगवान शिव की उपासना शैव संप्रदाय के अन्तर्गत की जाती है| दक्षिण भारत में शैव संप्रदाय के अनुयायी में नयनार कहलाते हैं
शैव मत के सम्प्रदाय :
- नाथ सम्प्रदाय,
- लकुलीश सम्प्रदाय (पाशुपात सम्प्रदाय ),
- कापालिक सम्प्रदाय,
- लिंगायत( वीरशैव) सम्प्रदाय
- कश्मीरी सम्प्रदाय
1. नाथ सम्प्रदाय | Nath Sampraday
- नाथ संप्रदाय के अन्य नाम : योग सम्प्रदाय, अवधूत सम्प्रदाय, सिद्धमत सिद्ध मार्ग सम्प्रदाय |
- नाथ संप्रदाय की प्रवर्तक मतसेन्द्रनाथ को माना जाता है इन्हें नाथमुनि ,योगनी कोल , लुई सिद्धपाद आदि भी कहा जाता है|
- भगवान शिव को आदीनाथ व आदि योग मानकर पूजा की जाती है|
- राजस्थान में नाथ संप्रदाय का प्रारम्भिक केन्द्र सिरे मन्दिर जालौर है|
मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य
- गुरु गोरखनाथ हठ योग के प्रवर्तक, इनके प्रसिद्ध शिष्य भर्तहरी हुए इनका प्रसिद्ध स्थान सरिस्का अलवर में स्थित है|
- जालंधर नाथ इन्होंने जालोर के सिरे मन्दिर को अपना केन्द्र बनाया |
राजस्थान में नाथ संप्रदाय के प्रमुख पंत और शाखाएं
बैराग पंथ बैराग पंथ का प्रमुख केन्द्र राता डूंगा पुष्कर के निकट नागौर में स्थित है संस्थापक राजा भर्तहरि |
2. मान पंत । पाव पंत
- मान पंथ की प्रमुख पीठ महामन्दिर जोधपुर और उदयमन्दिर जोधपुर है|
- जोधपुर के महाराजा मानसिंह ने महामंदिर और उदय मन्दिर का निर्माण करवाया |
- महामंदिर का निर्माण महाराजा मानसिंह ने अपने गुरु आईएस देवनाथ के लिए करवाया|
- नाथ संप्रदाय के मन्दिर को प्राय मठ कहा जाता है
3. पाशुपात सम्प्रदाय । लकुलीस सम्प्रदाय
- भगवान शिव की दिन में अनेक बार पूजा की जाती है|
- पाशुपात संप्रदाय के प्रवर्तक लकुलीस ॠषि मेवाड़ के हरित ॠषि लकुलीस संप्रदाय से सम्बन्धित थे|
- पाशुपत सम्प्रदाय सम्प्रदाय का राजस्थान में एकमात्र मंदिर एकलिंगनाथ जी का मन्दिर उदयपुर में स्थित है|
- जिसका निर्माण बप्पा रावल । कालभोज ने करवाया था|
- एकलिंग नाथ जी मन्दिर उदयपुर को गुहिल वंश का कुल देवता भी कहा जाता है|
4. कापालिक सम्प्रदाय
- भगवान शिव की भैरव के रूप में पूजा की जाती है|
- तांत्रिक श्मशानवासी व सुरापान करते हैं तथा इस संप्रदाय में नरबलि को वैध माना जाता है|
- गले में मुंडो की माला धारण की जाती है
5. लिंगायत सम्प्रदाय
शिव की शिवलिंग की पूजा की जाती है यह राजस्थान से सम्बन्धित सम्प्रदाय नहीं है
6. कश्मीरी सम्प्रदाय
यह संप्रदाय जो साधु कश्मीर घाटी में निवास करते हैं उनसे सम्बन्धित है
गूदड़ सम्प्रदाय
- गूदड़ सम्प्रदाय के प्रवर्तक संतदास जी थे|
- इस संप्रदाय की प्रमुख पीठ दांतड़ा भीलवाड़ा में स्थित है|
- संतदास जी हमेशा गोदरे से बने कपड़े पहनते थे | इसके संप्रदाय का नाम गूदड़ सम्प्रदाय रखा गया |
चरणदासी सम्प्रदाय
- चरणदासी संप्रदाय के प्रवर्तक संत चरणदास जी को माना जाता है|
- इस संप्रदाय की प्रधान पीठ दिल्ली में है| अन्य पीठ अलवर में स्थित है|
- चरणदास जी की 2 प्रमुख शिष्या थीं | सहजोबाई व दयाबाई
- सहजोबाई को राजस्थान की प्रथम महिला महंत कहा जाता है|
अलखिया सम्प्रदाय
- अलखिया सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत लालगिरी थे|
- संत लालगिरी जी की समाधि गलता जयपुर में स्थित है| व इस संप्रदाय के प्रधान पीठ बीकानेर में स्थित है|
- अलखिया सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ अलख स्तुति प्रकाश है|
निष्कलंक सम्प्रदाय
- निष्कर्ष सम्प्रदाय की स्थापना संत मावजी द्वारा की गई|
- निष्कलंक संप्रदाय के प्रधान पीठ सांवला गांव डूंगरपुर में है|
- संत मावजी ने वागड़ क्षेत्र में बिलों के लिए लसाडिया आन्दोलन चलाया
निर्गुण सम्प्रदाय राजस्थान | Nirgun Sampraday Rajasthan
कबीरपंथी सम्प्रदाय | kabirpantni sampraday
- कबीरपंथी सम्प्रदाय की स्थापना संत कबीर ने की थी|
- संत कबीर रामानन्द जी के शिष्य थे|
- संत कबीर ने जीवनभर अविवाहित रहते हुए सदैव जात पात छुआछूत आदि सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते हुए अपनी भक्ति साधना को आगे बढ़ाया
जसनाथी सम्प्रदाय | Jasnathi Sampraday
- जसनाथी सांप्रदायिक स्थापना संत जसनाथजी द्वारा की गई |
- जसनाथी संप्रदाय के प्रमुख पीठ कतियासर गांव बीकानेर में स्थित है|
- जसनाथजी ने कतियासर में 24 वर्ष की उम्र में जीवित समाधि ली सबसे कम उम्र में समाधि लेने वाले संत जसनाथजी थे |
- इस संप्रदाय में वृक्ष व मोर के पंख , गले में काली ऊन धागा आदि को पवित्र माना जाता है|
- जसनाथी सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ जलम झुलरों एवं सिद्ध जी रो लोको ,शंभूधड़ा व कोंडा है|
- जसनाथी संप्रदाय के प्रथम अनुयायी हारूजी व जियोजि थे |
- जसनाथी सम्प्रदाय में 36 नियम व 150 शब्दों के नियमों का पालन करने पर जोर दिया गया है|
- जसनाथी सम्प्रदाय में मंदिरों में पूजा करने वालों को सिद्ध कहा जाता है| तथा विरक्त व अविवाहित को परमहंस तथा गृहस्थी जाट को जसनाथी जाट कहा जाता है|
- सिकंदर लोदी ने जसनाथजी को कतियासर, बीकानेर में भूमि प्रदान की |
निरंजनी सम्प्रदाय | Niranjani Sampraday
- निरंजनी सम्प्रदाय के प्रवर्तक संत हरिदास जी हैं
- संत हरिदास जी का मूल नाम हरि सिंह जी था | इन्हें राजस्थान का वाल्मीकि भी कहा जाता है
- निरंजन संप्रदाय के प्रधान पीठ डीडवाना नागौर में स्थित है|
दादूपंथी सम्प्रदाय | Dadupanthi Sampraday
- दादू पंथ की स्थापना संत दादू दयाल जी ने 1574 में की थी|
- दादू पंथ की प्रमुख पीठ नरैना जयपुर में स्थित है|
- संत दादू का प्रसिद्ध ग्रन्थ दादूवाणी ढूँढ़ाड़ी भाषा में लिखा गया है|
- संत दादू जी के 52 शिष्य | दादू दयाल के प्रमुख शिष्यों में गरीबदास, मिसकीनदास, सुन्दरदास, बखनाजी, रज़्जबजी, माधोदास आदि है।
- दादूपंथी जीवन और अविवाहित रहकर भक्ति करते हैं|
- दादूपंथी न तो शवों को जलाते हैं न ही गाड़ते शवों को हमेशा वो पशु पक्षियों के लिए जंगल में छोड़ दिया जाता है
रामस्नेही सम्प्रदाय | Ramsnehi Sampraday
- रामस्नेही सम्प्रदाय की स्थापना संत रामचरणजी द्वारा की गई|
- रामस्नेही संप्रदाय की प्रधानपीठ शाहपुरा भीलवाड़ा में स्थित है|
- रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रार्थना स्थल रामद्वारे कहा जाता है|
रामस्नेही संप्रदाय की राजस्थान में अन्य प्रमुख 4 पीठे शाखा है|
- खेड़ापा शाखा : खेड़ापा शाखा जोधपुर में स्थित है खेड़ापा शाखा के प्रवर्तक संत रामदास जी थे|
- रेण शाखा : रेण शाखा नागौर में स्थित है| रेण शाखा के प्रवर्तक संत दरियाब जी थे|
- शाहपुरा शाखा : शाहपुरा शाखा भीलवाड़ा में स्थित है| शाहपुरा शाखा के प्रवर्तक संत रामचरण जी थे|
- सिंहथल शाखा : सिंहथल शाखा बीकानेर में स्थित है| सिंहथल शाखा के प्रवर्तक संत हरीरामदास जी थे|
परनामी सम्प्रदाय | Pranami Sampraday
- परनामी संप्रदाय के प्रवर्तक संत प्राणनाथजी थे |
- इस संप्रदाय की स्थापना गुजरात में हुई थी|
- राजस्थान के अन्दर इसकी एकमात्र पीठ आदर्श नगर जयपुर में स्थित है|
लालदासी सम्प्रदाय | Laldasi Sampraday
- लाल नाथ संप्रदाय के संस्थापक संत लालदासजी थे | जो जाति से मेव थे |
- लालदासी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ भरतपुर जिले के नगला जहाज नामक ग्राम में स्थित है| लालदासी सम्प्रदाय का प्रचलन अलवर व भरतपुर जिलों में है|
- लालदासी संप्रदाय के उपदेश वाणी नामक ग्रन्थ में संग्रहित हैं|
विश्नोई सम्प्रदाय | Vishnoi Sampraday
- विश्नोई संप्रदाय के संस्थापक ( प्रवर्तक ) संत जाम्भोजी को माना जाता है|
- विश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना समराथल धौरा नामक स्थान पर की गई|
- विश्नोई संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ जम्भसागर है
- विश्नोई संप्रदाय के कुल 29 नियम तथा 120 शब्द बताए गए हैं| विश्नोई संप्रदाय के अनुयायियों को 29 नियमों का पालन करना पड़ता है|
- संत जाम्भोजी को विष्णु का अवतार माना जाता है|
- विश्नोई संप्रदाय में पेड़ पौधों की रक्षा पर्यावरण रक्षा जीव रक्षा गोरक्षा आदि पर बल दिया गया है| विश्नोई सम्प्रदाय में खेजड़ी वृक्ष व हैरान को पूज्य माना जाता है |
- सिकंदर लोदी दिल्लीः व राव लूणकरण बीकानेर जाम्भोजी के समकालीन थे| जाम्भोजी के कहने पर सिकंदर लोदी ने पशु हत्या पर रोक व हरे वृक्षों की कटाई पर रोक लगाई थी |
Rajasthan Ke Sant Sampraday | राजस्थान के प्रमुख संत
संत जाम्भोजी | Sant Jambhoji
- जाम्भोजी का जन्म 1451 ईसवी जाम्भोजी का जन्मस्थान पीपासर गांव नागौर |
- संत जाम्भोजी की माता का नाम हंसादेवी व पिता का नाम लोहर जी पवार था |
- संत जाम्भोजी की जाती राजपूत गोत्र पवार |
- संत जाम्भोजी के गुरु का नाम गोरखनाथ |
- बिश्नोई सम्प्रदाय के उपदेश स्थल को साथरी कहा जाता है|
- संत जाम्भोजी द्वारा 1485 में विश्नोई संप्रदाय की स्थापना कतियासर बीकानेर |
- संत जाम्भोजी के नियम 29 नियम |
- संत जाम्भोजी की समाधि मुकाम गांव बीकानेर |
- संत जाम्भोजी के प्रमुख ग्रंथ जब संहिता, जम्भसागर (29 नियम ),शब्दावली, विश्नोई धर्मप्रकाश ,जम्भवाणी (120 शब्द ) |
- संत जाम्भोजी के उपनाम पर्यावरण वैज्ञानिक, श्री कृष्ण का अवतार, विष्णु का अवतार , गहला व गूंगा |
- विश्नोई संप्रदाय के प्रमुख धार्मिक स्थल पीपासर( नागौर ), जांबा गांव (फलौदी ,जोधपुर), जांगलू( बीकानेर) मुक्तिधाम मुकाम (नोखा बीकानेर ), लालसर बीकानेर|
- बिश्नोई संप्रदाय में अभिमंत्रित जल को पाहल कहा जाता है |
- जाम्भोजी सिकंदर लोदी ( दिल्ली ) के समकालीन थे |जाम्भोजी के सम्मान में बीकानेर नरेश द्वारा खेजड़ी के वृक्ष को अपने राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया गया जिसे माटो कहा जाता है
जसनाथजी | Jasnath ji
- जसनाथजी ने जसनाथी संप्रदाय 1504 की स्थापना की|
- जसनाथ जी का जन्म 1482 ईसवी | जसनाथजी का जन्मस्थान कतियासर गांव बीकानेर |
- जसनाथजी की माता का नाम रूपादे जसनाथजी की जाति जाट जसनाथजी के पिता का नाम हम्मीर जाट |
- जसनाथजी के बचपन का नाम जसवंत सिंह |
- जसनाथजी के गुरु का नाम गोरखनाथ|
- जसनाथजी के नियम 36 नियम |
- जगन्नाथ जी की भक्ति निर्गुण भक्ति | जसनाथी सम्प्रदाय में जाल वृक्ष तथा मोर के पंख को पवित्र माना जाता है जसनाथी संप्रदाय के अनुयायी फतेह फते का जयघोष करते हुए अंगारों पर नृत्य करते हैं|
- जसनाथजी के प्रमुख ग्रंथ सिभू धड़ा , कोडा , सिद्ध जी रो सिर लोको, जसनाथी पुराण (36 नियम )
जसनाथी संप्रदाय के अन्य 5 पीठ
- मालासर बीकानेर
- पुनासर बीकानेर
- बम्बलू बीकानेर
- पांचला नागौर
- लिखमादेसर बीकानेर
संत दादू दयाल( संत दादू) जी | Sant Dadu Dayal
- संत दादू का जन्म 1544 ईसवी संत दादू का जन्म स्थान अहमदाबाद गुजरात |
- संत दादू की कर्मभूमि राजस्थान | लोक मान्यताओं के अनुसार लोदीराम जी नामक ब्राह्मण को संत दादू बक्से के अन्दर साबरमती नदी में बहते हुए मिले थे |
- संत दादू को राजस्थान का कबीर कहा गया है| दादूपंथ की प्रधान पीठ नरैना जयपुर | संत दादू ने सर्वप्रथम 1568 में सांभर जयपुर में उपदेश दिए |
- फिर नरैना जयपुर आए सन 1574 में संत दादू ने दादूपंथ की स्थापना की दादूपंथ में सत्संग स्थल को अलख दरीबा कहा जाता है|
- संत दादू के प्रमुख ग्रंथ दादू रि वाड़ी ,दादू रा दूहा, दादू हरडे वाणी ,अंगवधू दादू दादू के उपदेश हिन्दी विस्तृत सधुक्कड़ी भाषा । ढूँढ़ाड़ी में है
- संत दादू ने 1605 ईसवी में नारायणा भैराणा पहाड़ी पर स्थित दादू खोल गुफा में समाधि ली थी |इसे दादू खोल या दादू पाल का कहा जाता है |
- 1585 ईस्वी में दादूदयालजी ने आमेर के राजा भगवान दास के साथ फतेहपुर सीकरी में मुगल सम्राट अकबर से मुलाकात की |
- दादूपंथ में मृत व्यक्तियों को जलाने या दफनाने का नियम नहीं है बल्कि खुले मैदान और पशु पक्षियों के खाने के लिए रख दिया जाता है|
दादूपंथ की प्रमुख 5 शाखाएं हैं|
- खालसा गरीबदास जी की आचार्य परम्परा से सम्बन्ध साधु जिसकी मुख्यपीठ नारायणा जयपुर में है
- विरक्त घूम घूमकर उपदेश देने वाले साधु विरक्त शाखा में आते हैं
- उत्तरादे या स्थानधारी दादूपंथ के प्रसार के लिए राजस्थान को छोड़कर उत्तर भारत में जाने वाले साधु उत्तरादे या स्थानधारी कहलाए
- खाकी शरीर पर बसों व जटा रखने वाले साधु खाकी शाखा के अंतर्गत आते हैं
- नागा दादूपंथ की नागा शाखा के प्रवर्तक सुन्दरदासजी थे ये साधु कृषि व व्यापार का कार्य करते हैं एवं शस्त्र रखते हैं
- संत दादू जी के 52 शिष्य जिन्हें 52 स्तंभ कहा जाता है | दादू दयाल के प्रमुख शिष्यों में गरीबदास, मिसकीनदास, सुन्दरदास, बखनाजी, रज़्जबजी, माधोदास आदि है।
संत रज्जब जी | Sant Rajjab ji
- रज्जब जी का जन्मस्थान सांगानेर जयपुर एवं प्रधान पीठ सांगानेर जयपुर में स्थित है|
- रज्जब जी एक मात्र ऐसे साधु थे जो जीवन भर दूल्हे के भेष में रहे |
- रज्जब जी के प्रमुख रचनायें रज्जब वाणी, सर्वंगी
संत सुन्दरदास जी | Sant Sundardas Ji
- सुन्दर दास जी का जन्म 1596 दौसा में हुआ |
- सुन्दरता जी के पिता का नाम परमानन्द जी खंडेलवाल था|
- सुंदरदास जी ने दादूपंथ की उपशाखा नागा पंथ की स्थापना की|
- सुन्दरता जी को दूसरा शंकराचार्य भी कहा जाता है|
- संत सुन्दरदास जी के प्रमुख ग्रंथ ज्ञान समुन्दर सुन्दर साथ सुख समृद्धि सुन्दर ग्रंथावली सुन्दरविलास आदि है सुन्दरदास के ग्रन्थों की भाषा पिंगल थी
संत मावजी | Sant Mavji
- संत मावजी का जन्म 1714 ईसवी में हुआ | संत मावजी का जन्मस्थान सांवला गांव डूंगरपुर है |
- संत मावजी के पिता का नाम दाल रूमसी व माता का नाम केसरबाई था |
- संत मावजी को भगवान विष्णु का कल्कि अवतार माना जाता है|
- संत मावजी ने निष्कलंक संप्रदाय की स्थापना की |
- निष्कलंक सम्प्रदाय की प्रधान पीठ सांवला गांव डूंगरपुर है|
- संत मावजी ने बागड़ी भाषा में श्रीकृष्ण की लीलाओं की रचना की व इनकी वाणी चोपड़ा कहलाती है संत मावजी के अनुयायियों को साध कहा जाता है
संत चरण दास जी | Sant charan das ji
- संत चरणदासजी जी का जन्म 1703 ई. , चरणदासजी जी का जन्मस्थान डेरागाँव ,अलवर पिता का नाम मुरलीधर माता का नाम कुंजुबाई |
- चरणदासी संप्रदाय की प्रधानपीठ नई दिल्ली | चरणदासी सम्प्रदाय एकमात्र सम्प्रदाय है जिसकी प्रधान पीठ राजस्थान से बाहर स्थापित है
- संत चतुरदास जी के गुरु का नाम सुखदेव जी |
- यह सगुण व निर्गुण भक्ति का मिश्रण है चरण दास जी के प्रमुख ग्रंथ ब्रह्मज्ञान सागर, भक्तिसागर ज्ञान, सर्वोदय ब्रह्म चरित्र |
संत चरणदासजी के प्रमुख शिष्य
1.दयाबाई : दयाबाई का जन्म डेहरा गांव अलवर में हुआ उनका प्रमुख ग्रंथ दयाबोध व विनय मालिका है| 2.सहजोबाई : सहजोबाई का जन्म डेहरा गांव अलवर में हुआ सहजोबाई को मत्स्य की मीरा भी कहा जाता है|
सहजोबाई के प्रमुख ग्रंथ शबदवाणी व सोलह तिथि व सहज प्रकाश हैं
संत रामचरणजी | Sant Ram charan ji
- संत रामचरण जी का जन्म 17 से 20 ईसवी में हुआ |
- संत रामचरण जी का जन्म स्थान सोडागांव टोंक था | संत रामचरण जी के पिता का नाम भगतराम व माता का नाम देुऊजी था|
- संत रामचरणजी के बचपन का नाम रामकिशन था |
- रामस्नेही संप्रदाय के प्रधानपीठ शाहपुरा भीलवाड़ा में स्थित है|
- रामस्नेही संप्रदाय की प्रार्थना स्थल को रामद्वारा कहा जाता है |
- संत रामचरण जी का प्रमुख ग्रंथ अर्णभ वाणी है इस ग्रन्थ में इनके उद्देश्य संग्रहित हैं
- संत रामचरण जी ने भगवान राम की निर्गुण उपासना की |
रामस्नेही सम्प्रदाय के अन्य प्रमुख पीठे
- रेण शाखा : रेण शाखा मेड़ता सिटी ,नागोर | रेण शाखा की स्थापना संत दरियाव जी ने की | संत दरियाव जी का जन्म 1676 ईसवी जैतारण पाली में हुआ | इनके पिता का नाम मानजी तथा माता का नाम गीगा था | संत दरियाव जी के गुरु का नाम प्रेम दास जी महाराज था
- खेड़ापा शाखा : खेड़ापा शाखा की स्थापना जोधपुर में सन 1726 ईस्वी में की गई | खेड़ापा शाखा के संस्थापक ( स्थापना ) संत रामदास जी द्वारा की गई |
- सिंहथल शाखा : सिंहथल शाखा की स्थापना संत हरिराम दास जी द्वारा बीकानेर में की गई |
- शाहपुरा शाखा : शाहपुरा शाखा की स्थापना रामचरण जी महाराज द्वारा की गई |
संत लाल दास जी | Sant Laldas ji
- संत लाल दास जी का जन्म 1540 ई धोलीदूब गांव अलवर में हुआ |
- संत लाल दास जी के पिता का नाम चांदमल तथा माता का नाम समझा देवी तथा पत्नी का नाम मोगरी था |
- संत लाल दास जी द्वारा लालदासी संप्रदाय की स्थापना की गई |
- लालदासी संप्रदाय की प्रधान पीठ नगला गांव भरतपुर में स्थित है|
- संत लाल दास जी के गुरु का नाम फकीर मगन चिश्ती था |
- लालदासजी के उपदेश लालदास की चेतावनिया नामक ग्रन्थ में मिलते हैं|
- अलवर व भरतपुर के मेव जाति के लोग लाला जी को पीर की मान्यता के रूप में पूजते हैं|
- लालदास जी ने ही औरंगजेब के लिए भविष्यवाणी की थी कि वह 1 दिन दिल्ली का शासक बनेगा और अपने भाइयों का वध करेगा |
- इस संप्रदाय में दीक्षित करने हेतु व्यक्ति को सबसे पहले काला मुंह पर 1 गधे पर उल्टा मुंह करके बैठाकर गांव की गलियों घुमाया जाता है|
संत हरिदास जी | Sant Haridas ji
- संत हरिदास जी का जन्म 1455 ई. कॉपडोद नागौर में हुआ |
- संत हरिदास का मूल नाम हरि सिंह सांखला था | संत हरिदास को कलयुग का वाल्मीकि कहा जाता है|
- संत हरिदास ने निर्गुण भक्ति के निरंजनी संप्रदाय की स्थापना की|
- निरंजनी संप्रदाय को अलख निरंजन या हरी निरंजन के नाम से भी जाना जाता है|
- संत हरिदास संन्यासी बनने से पहले 1 डाकू थे |
- निरंजनी सम्प्रदाय संत हरिदास के प्रमुख ग्रंथ मंत्र रात प्रकाश तथा हरी पुरुष की वाणी है|
- निरंजनी संप्रदाय के 2 प्रमुख शाखाएं हैं निहंग तथा घरबारी |
संत धन्ना जाट | Sant Dhanna ji
- संत धन्ना का जन्म धवन गांव टोंक में हुआ|
- संत धन्ना ने राजस्थान में भक्ति आन्दोलन को प्रारम्भ किया |
- राजस्थान में संत धन्ना निर्गुण भक्ति परम्परा के प्रथम संत |
संत पीपा | Sant Pipa
- संत पीपा का जन्म 1425 ईसवी में चैत्र पूर्णिमा को गागरोन दुर्ग ( झालावाड़ ) में राजा कड़ावा राव खींची के यहां हुआ |
- संत पीपा का मूल नाम ( बचपन का नाम ) प्रताप सिंह खींची था |
- इनकी माता का नाम लक्ष्मणवती तथा पिता का नाम कड़ावा राव खिंची था |
- संत पीपा की गुफा टोडा गांव टॉक में स्थित है|
- संत पीपा का मन्दिर समदड़ी गांव बाड़मेर मै स्थित है|
- संत रामानन्द व रैदास ने गागरोन दुर्ग में आकर इन्हें भक्ति का मार्ग दिखाया | संत पीपा की छतरी गागरोन दुर्ग में स्थित है|
- राजस्थान में निर्गुण भक्ति की अलख जगाने वाले प्रथम संत संत पीपा को कहा जाता है|
- संत पीपाजी द्वारा रचित ग्रंथ जोग चिन्तामणि संत पीपाजी के उपदेश जो चिन्तामणि नामक ग्रन्थ में संग्रहीत हैं|
- राज्य त्याग के पश्चात संत पीपा ने जीविका चलाने के लिए सिलाई का काम किया, इसीलिए दर्जी समुदाय के आराध्य देव हैं|
- दिल्ली के शासक फिरोजशाह तुगलक से युद्ध करो उसे पराजित करने वाले संत पीपा थे |
संत नवलदास जी | Sant Naval Das ji
- संत नवलदास जी का जन्म हरसोलाव गांव नागौर में हुआ|
- संत नवलदास जी ने नवल संप्रदाय की स्थापना की|
- संत नवलदास जी की कर्मभूमि जोधपुर थी |
संत बाल नंदाचार्य
- संत बाल नंदाचार्य की मुख्य केन्द्र कर्मभूमि लोहागर्ल झुंझुनूं थी|
- इन्होंने मूर्तियों की रक्षा के लिए औरंगजेब से युद्ध किया|
- सेना रखने कारण इन्हें लश्कर संत के नाम से भी जाना जाता है|
- संत बालानंदाचार्य ने अपनी सेना भेजकर मेवाड़ के महाराजा राज सिंह तथा मारवाड़ के दुर्गादास राठौड़ की औरंगजेब के ख़िलाफ़ मदद की थी |
भक्त कवि दुर्लभ | Bhakt kavi durlabh
- भक्त कवि दुर्लभ को राजस्थान का नरसिंह भी कहा जाता है | भक्त कभी दुर्लभ का सम्बन्ध वागड़ क्षेत्र से है|
- बांसवाड़ा व डूंगरपुर क्षेत्र को उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बनाया|
संत सुन्दरदास जी | Sant Sundardas
- संत सुन्दरदास जी प्रधानपीठ फतेहपुर में हैं|
- संत सुन्दरदास जी दादूजी की शिष्यों में से 1 शिष्य थे |
- संत सुन्दरदास जी के प्रमुख ग्रंथ ज्ञानसमुद्र सुन्दर ग्रंथावली सुन्दर सार इत्यादि हैं|
राजस्थान की प्रमुख महिला संत | Rajasthan ki mahila sant
राजस्थान की प्रमुख महिला संत संत फूलीबाई, मीराबाई, संत रानाबाई, गवरीबाई ,संत करमतीबाई, संत भूरीभाई अलख ,संत कर्माबाई माता, संत नन्हीबाई, संत कर्मठीबाई, संत ज्ञानमती बाई, संत राणी रूपादे | राजस्थान के प्रमुख संत एवं संप्रदाय Rajasthan Ke Sant Sampraday
गबरीबाई | Gavri bai
- गबरीबाई को वागड़ की मीरा भी कहा जाता है|
- गबरीबाई का सम्बन्ध डूंगरपुर से है गवरीबाई की प्रमुख रचना कीर्तन माला है |
- गबरीबाई ने भी कृष्ण को पति मानकर की भक्ति की |
मीराबाई | Sant Mirabai
- संत मीराबाई का जन्म 1498 में कुड़की ग्राम पाली में हुआ |
- संत मीराबाई को राजस्थान की राधा के नाम से जाना जाता है|
- संत मीराबाई के पिता का नाम रतन सिंह था जो बाजोली नागौर के जागीरदार थे | संत मीराबाई की माता का नाम वीर कुवर था संत मीराबाई के दादा का नाम राव दूदा था जो समय मेड़ता के शासक थे|
- संत मीराबाई का मूल नाम पेमल, कसबु बाई था |
- मीराबाई ने दास दासी सम्प्रदाय चलाया जिसमें पुरूष भी महिलाओं की तरह कपड़े पहनते हैं|
- संत मीराबाई का लालन पालन मेड़ता सिटी नागौर में हुआ व इनका विवाह चित्तौड़गढ़ में किया गया मीराबाई के पति का नाम भोजराज था जो मेवाड़ के राणा सांगा के पुत्र थे|
- इनके बचपन के गुरु का नाम पंडित गजाधर था जिन्होंने मीरा को संगीत नृत्य इत्यादि शिक्षा दी | संत मीरा के आध्यात्मिक गुरु संत रैदास व रूप गोस्वामी थे |
- संत रैदास मीराबाई के बुलाने पर सर्वप्रथम राजस्थान में चित्तौड़गढ़ आए |
- मीराबाई तुलसीदास की सलाह पर रूप गोस्वामी जी के पास चले जाते हैं वहां उन्होंने तपस्या की मीराबाई का अंतिम समय रणछोड़राय मन्दिर द्वारका गुजरात में गुज़रा|
- उदयसिंह ने मीराबाई को द्वारका से बुलाने हेतु सूरदास जी को भेजा |
- अक्तूबर 1952 में मीराबाई पर 2 आने का डाक टिकट जारी हुआ मीराबाई की तुलना सूफी संत राबिया से की जाती है|
- मीराबाई के प्रमुख ग्रंथ सत्यम भामो रो रुसडो , रुकमणी मंगल , गीत गोविन्द पर टीका , नरसिंह मेहरा री हुंडी है|
- रत्ना खाती ने मीराबाई के जीवन पर बृज भाषा नरसी बाई रो मायरो नामक ग्रंथ लिखा भक्तमाल (प्रियदास द्वारा रचित) ग्रंथ से भी मीराबाई के बारे में पता चलता है|
- मीराबाई की भक्ति का भाव दाम्पत्यभाव था | मीराबाई की कविता ब्रजभाषा में लिखी हुई है| जिस पर गुजराती भाषा का प्रभाव है|
अन्य प्रमुख महिला संत
- संत नन्हीबाई इनका सम्बन्ध खेतड़ी झुंझुनूं से है ये खेतड़ी की सुप्रसिद्ध गायिका थीं |
- संत कर्माबाई माता इनका सम्बन्ध नागौर से है मान्यता है कि उन्होंने अपने हाथ से भगवान को खिचड़ा खिलाया था |
- संत भूरीभाई अलख संत भूरीभाई अलग का सम्बन्ध मेवाड़ से है |
- संत राणी रूपादे संत राणी रूपादे राव मल्लीनाथ जी की रानी थी |
- संत रानाबाई संत रानाबाई का सम्बन्ध हरनावा नागौर से है| संत रानाबाई को राजस्थान की दूसरी मीरा कहा जाता है|
- संत फूलीबाई संत फूलीबाई का सम्बन्ध जोधपुर से है|
- संत कर्मठी बाई संत कर्मठी भाई का सम्बन्ध वागड़ क्षेत्र से है|
जैन धर्म के प्रमुख संत | Jain dharm ke pirmukh sant
भीखणजी (आचार्य भिक्षु स्वामी ) : आचार्य भीखणजी का जन्मस्थान (जन्म – 1726) कटारिया जोधपुर है| आचार्य भीखणजी ने तेरा पंथ संप्रदाय की स्थापना ( 1760 ई. ) की | श्वेताम्बर जैन आचार्य। इस सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य बने।
आचार्य श्री तुलसी : जन्म – 20 अक्टूबर, 1914 | जन्म स्थान – लाडनू (नागौर) | पिता – झूमरमल | माता – वंदना | तेरापंथ सम्प्रदाय के आचार्य। ‘अणुव्रत’ का सिद्धान्त दिया। ‘जैन श्वेताम्बर सम्प्रदाय’ के 9वें आचार्य। वर्ष 1949 में चूरू जिले के सरदारशहर से ‘अणुव्रत आन्दोलन’ प्रारम्भ किया। वर्ष 1980 में लाडनूं में ‘समण श्रेणी’ को प्रारम्भ किया।
आचार्य महाप्रज्ञ : जन्म – 1920 , जन्म स्थान – टमकोर (झुंझुनूँ) | इस सिद्धान्त के चार चरण हैं – ध्यान, योगासन एवं प्राणायाम, मंत्र एवं थेरेपी। 1970 के दशक में ‘प्रेक्षाध्यान’ सिद्धान्त दिया। सुजानगढ़ से वर्ष 2001 में ‘अहिंसा यात्रा’ प्रारम्भ की। वर्ष 1991 में लाडनूं में ‘जैन विश्व भारती’ डीम्ड विश्वविद्यालय की स्थापना की।वर्ष 2003 में जारी ‘सूरत स्प्रिचुअल घोषणा’ (SSD) के नेतृत्वकर्ता।
रचित पुस्तकें – मंत्र साधना, योग, अनेकांतवाद, Art of thinking Positive, Mistries of Mind, Morror of World.
मुस्लिम धर्म के प्रमुख संत | Muslim dharm ke pirmukh sant
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, नरहड़ के पीर, शेख हमीमुद्दीन नागोरी, पीर फखरुद्दीन
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म फारस के ग्राम सर्जरी में हुआ |
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने रास्ता में चुस्ती संप्रदाय का प्रवर्तन किया |
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज तृतीय के समकालीन अजमेर आए |
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को ग़रीब नवाज़ के नाम से भी जाना जाता है|
- ख्वाजा साहब की दरगाह में प्रतिवर्ष जब वहां की 1 से 6 रात जब तक उर्स का विशाल मेला लगता है|
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के गुरु का नाम हजरत शेख उस्मान हारूनी था |
- मोहम्मद गौरी ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को सुलतानपुर हिन्दी की उपाधि दी |
- अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह का निर्माण इल्तुमिश ने करवाया था |
- ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का इंतकाल 1233 ईसवी में अजमेर में हुआ |
नरहड़ के पीर
- नरहड़ के पीर के अन्य नाम हजरत शक्कर बाबा, बागड़ के धनी इत्यादि हैं |
- नारायण के पीर की दरगाह नरहड़ ग्राम चिड़ावा झुंझुनूं में स्थित है|
- नरहड़ के पीर गुरु का नाम शेख सलीम चिश्ती है|
- शेख सलीम चिश्ती के नाम पर ही बादशाह अकबर ने अपने पुत्र जहांगीर का नाम सलीम रखा था|
- हजरत शक्कर बाबा की दरगाह पर जन्माष्टमी के दिन उर्स का मेला भरता है|
पीर फखरुद्दीन
- पीर फखरूद्दीन की दरगाह गलियाकोट डूंगरपुर में स्थित है
- गलियाकोट डूंगरपुर दाउदी बोहरा संप्रदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल है
शेख हमीमुद्दीन नागोरी
- शेख हमीदुद्दीन नागौरी का कार्य क्षेत्र सुवाल गाव नागौर था|
- शेख हमीदुद्दीन नागौरी की उपाधि सुल्तान उल तारकीन (संन्यासियों के सुल्तान ) थी यह उपाधि इन्हें ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती द्वारा दी गई
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